चौदहवीं का चाँद

By mehr-husain-naqviFebruary 27, 2024
ख़याल-ओ-फ़िक्र के बिखरे हुए हवालों में
विसाल हिज्र मोहब्बत की सब मिसालों में
ज़मीं से दूर कहीं आसमाँ के
तारों में


लिए ये 'अक्स उतरता है आबशारों में
शुमार इस का है अक्सर ही
शब-गुज़ारों में
ये सोगवार सा लगता है


सोगवारों में
मगर वो हुस्न का 'आलम कि
जब ये पूरा हो और
आब-ओ-ताब से हर बाम पर


उतर आए तो फिर शबाब सभी
काएनात पर इस का असर वो छोड़े कि
लम्हे असीर हो जाएँ
किसे ख़बर है कि दश्त-ए-सुख़न के


मारों का
गवाह होता है ये चाँद अश्क-बारों का
ग्रहन खा के ये अक्सर पयाम देता है
कि लम्हा भर को अगर रौशनाई खो जाए


दुबारा
निकलो इसी आब-ओ-ताब से निकलो
घटो कहीं पे तो बढ़ कर हसीन
हो जाओ ये चाँद चौदह का


कितना हसीन होता है
ये शब के कितने ही असरार खोल जाता है
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