दरवाज़ा

By ananth-faaniFebruary 25, 2024
देखो तो रिश्ता बन जाता है
कमरे से
दीवारों से
छत से


खिड़कियों से
मेरा भी था उन सब से ही
लेकिन
जाने क्यों आज मुझे उस दरवाज़े की याद में बेचैनी सी होती है


जिस ने जाते हुए सब से आख़िर में
और आते हुए सब से पहले
मेरे क़दमों को सुना है
जिस से मेरा अंदर बाहर होता रहना चलता रहता था


उस दिन तक
जिस दिन तक
वो घर घर था
उस दरवाज़े ने मेरे बचपन को जाते हुए


और जवानी को आते हुए देखा है
उस शहर से तो नाते के लग-भग सारे डोर ही टूट चुके हैं
आज वो घर भी बिक गया है
92164 viewsnazmHindi