नग़्मगी गीत हर्फ़-ओ-नवा नाला-ए-शौक़ सौत-ओ-सदा एक बहरी सियासत के दरबार में सर-निगूँ पा-ब-ज़ंजीर लाए गए सारा सीमाब नक़्द-ओ-नज़र सब तिलिस्मात-ए-हर्फ़-ओ-हुनर पर्दा-ए-सेहर-ओ-असरार से टूट कर मक़्तल-ए-आरज़ू बन गए वो तरब-ज़ार दिल-ए-क़स्र-ए-ग़म रात-भर जागती आगही या'नी इक़लीम-ए-जाँ मशीनों के खंडरात में खो गए वो जो आहंग-ए-आलम था ख़्वाबों का मस्कन था और हर्फ़-ओ-मा'नी की ततहीर था अपनी बेदारियों की सज़ा काटने के लिए संग-ओ-आहन में ढाला गया सज्दा-ए-हक़ तमन्ना के आफ़ाक़ तक दर्द के क़ाफ़िले काबा-ए-नूर तक आबला-पाई के सिलसिले ज़र-ए-मग़रिब की मीज़ान में तुल गए हम कि इस दश्त में आबला-पा थे सदियों से इस राह के संग-ए-मील अपने क़दमों के हमराज़ थे हम भी इस दौर-ए-उफ़्तादगी में बस तमाशा-ए-अहल-ए-करम देखते रह गए