वो ज़िंदगी का अजीब-ओ-ग़रीब मौसम था बहारें टूट पड़ी थीं सुहाने जिस्मों पर नफ़स नफ़स में फ़ुसूँ था नज़र नज़र में जुनूँ तसव्वुर-मय-ए-इस्याँ से चूर चूर बदन नुजूम-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र टिमटिमा के डूब गए ख़ुमार ज़ेहनों पे छाया तो जिस्म जाग उठे अंधेरा गहरा हुआ काएनात बहरी हुई उभर के सायों ने इक दूसरे को पहचाना