तआ'रुफ़
By farigh-bukhariJune 18, 2021
वो ज़िंदगी का अजीब-ओ-ग़रीब मौसम था
बहारें टूट पड़ी थीं सुहाने जिस्मों पर
नफ़स नफ़स में फ़ुसूँ था नज़र नज़र में जुनूँ
तसव्वुर-मय-ए-इस्याँ से चूर चूर बदन
नुजूम-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र टिमटिमा के डूब गए
ख़ुमार ज़ेहनों पे छाया तो जिस्म जाग उठे
अंधेरा गहरा हुआ काएनात बहरी हुई
उभर के सायों ने इक दूसरे को पहचाना
बहारें टूट पड़ी थीं सुहाने जिस्मों पर
नफ़स नफ़स में फ़ुसूँ था नज़र नज़र में जुनूँ
तसव्वुर-मय-ए-इस्याँ से चूर चूर बदन
नुजूम-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र टिमटिमा के डूब गए
ख़ुमार ज़ेहनों पे छाया तो जिस्म जाग उठे
अंधेरा गहरा हुआ काएनात बहरी हुई
उभर के सायों ने इक दूसरे को पहचाना
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