गुनाह By Nazm << काग़ज़ की नय्या गर्द-ए-राह >> पूछता हूँ जब कभी मैं इन फ़रिश्तों से कि लिखा क्या है तुम ने हाल मेरे उन गुनाहों का जिन्हें मैं रोज़ करता हूँ तो ज़ालिम कुछ बताते ही नहीं हैं हाँ मगर वो हाल मेरे उन गुनाहों का सुनाते हैं जिन्हें भूले से भी मैं ने कभी सोचा नहीं है Share on: