हम-ज़ाद

By shakeel-azmiFebruary 29, 2024
बहुत पहले जो नफ़रत जाग उठी थी
लहू में इक सफ़ेदी आ गई थी
ज़मीन-ए-दिल का बटवारा हुआ था
मिरे आँगन में इक दीवार उठी थी


वही दीवार बरसों बा'द जैसे
शिकस्ता होते-होते गिर गई है
पुराने ज़ख़्म ताज़ा हो गए हैं
कोई मुझ को सदाएँ दे रहा है


मिरे अन्दर ख़मोशी चीख़ उठी है
मिरा हम-ज़ाद ज़िंदा हो गया है
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