हमदर्दी

By allama-iqbalOctober 24, 2020
टहनी पे किसी शजर की तन्हा
बुलबुल था कोई उदास बैठा
कहता था कि रात सर पे आई
उड़ने चुगने में दिन गुज़ारा


पहुँचूँ किस तरह आशियाँ तक
हर चीज़ पे छा गया अँधेरा
सुन कर बुलबुल की आह-ओ-ज़ारी
जुगनू कोई पास ही से बोला


हाज़िर हूँ मदद को जान-ओ-दिल से
कीड़ा हूँ अगरचे मैं ज़रा सा
क्या ग़म है जो रात है अँधेरी
मैं राह में रौशनी करूँगा


अल्लाह ने दी है मुझ को मशअल
चमका के मुझे दिया बनाया
हैं लोग वही जहाँ में अच्छे
आते हैं जो काम दूसरों के


56879 viewsnazmHindi