न हम हैं अहल-ए-सियासत न हम फ़सादी हैं हुसैन वाले हैं हम लोग इत्तिहादी हैं हसब नसब भी हमारा अली से मिलता है जनाब-ए-फ़ातिमा-ज़हरा हमारी दादी हैं मुराद मिलती है बाब-उल-मुराद से यूँ भी अली के लाडले अब्बास ख़ुद मुरादी हैं बस एक ख़ुत्बा-ए-ज़ैनब अली के लहजे में यज़ीदियत की जड़ें दूर तक हिला दी हैं जनाब-ए-हज़रत-ए-अब्बास की क़सम 'नश्तर' ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम ज़ब्त के भी आदी हैं