ज़मिस्ताँ
By faisal-azeemJune 7, 2021
सख़्त सफ़्फ़ाक
ख़ुद में सिमट कर चटख़ती हुई बर्फ़
और मुंजमिद जिस्म-ओ-जाँ
रात
जज़्बों की क़ब्रों पे कत्बे के मानिंद अटकी हुई
हाथ खुर्चे हुए साँस उखड़ी हुई
लफ़्ज़
गोया समाअ'त के पर्दे से टकरा के चिपके हुए
बर्फ़ पर
चार-ओ-नाचार पैरों की जमती हुई उँगलियाँ
हड्डियों की दराड़ों में घुसती हवा
ख़ून तक राह पाने की कोशिश में
टूटी फ़सीलों पे यलग़ार करती हुई
दिल बक़ा के लिए ख़ुद से लड़ता हुआ
ख़ून पीता हुआ और उगलता हुआ
कैसा बोहरान है दम निकलता नहीं
सर्द मौसम किसी तौर टलता नहीं
जिस क़दर हो सके
गिरते पेड़ों की शाख़ें जलाते रहो
आग बुझने न दो
ख़ुद में सिमट कर चटख़ती हुई बर्फ़
और मुंजमिद जिस्म-ओ-जाँ
रात
जज़्बों की क़ब्रों पे कत्बे के मानिंद अटकी हुई
हाथ खुर्चे हुए साँस उखड़ी हुई
लफ़्ज़
गोया समाअ'त के पर्दे से टकरा के चिपके हुए
बर्फ़ पर
चार-ओ-नाचार पैरों की जमती हुई उँगलियाँ
हड्डियों की दराड़ों में घुसती हवा
ख़ून तक राह पाने की कोशिश में
टूटी फ़सीलों पे यलग़ार करती हुई
दिल बक़ा के लिए ख़ुद से लड़ता हुआ
ख़ून पीता हुआ और उगलता हुआ
कैसा बोहरान है दम निकलता नहीं
सर्द मौसम किसी तौर टलता नहीं
जिस क़दर हो सके
गिरते पेड़ों की शाख़ें जलाते रहो
आग बुझने न दो
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