क़ुतुब-मीनार

By rahbar-jaunpuriJuly 12, 2021
ऐ क़ुतुब-मीनार ऐ भारत की अज़्मत के निशाँ
हर घड़ी साया-फ़गन रहता है तुझ पर आसमाँ
तेरे हर इक संग में पिन्हाँ है तेरी दास्ताँ
दीदा-ए-हैरत से तकते हैं तुझे अहल-ए-जहाँ


सर-बुलंदी पर तिरी हम हिन्दियों को नाज़ है
तू हमारी ख़ुशनुमा तारीख़ का ग़म्माज़ है
तेरा मस्कन अर्ज़-ए-दिल्ली रश्क-ए-हुस्न-ए-कोह-ए-क़ाफ़
चाँद-सूरज रोज़ तेरे गिर्द करते हैं तवाफ़


सारी दुनिया को है तेरी अज़्मतों का ए'तिराफ़
तुझ से होता है हमारी क़ौमीयत का इंकिशाफ़
तेरी सन्नाई ज़माने के लिए पुर-पेच है
आज भी पैरिस का टावर तेरे आगे हेच है


तू हमारी शान-ओ-शौकत का है ताबिंदा गवाह
तुझ से रौशन है हमारे इल्म-ओ-फ़न की शाहराह
तुझ पे पड़ते ही चमक उठती है हैरत से निगाह
तू हमारा पासबाँ है तू हमारा ख़ैर-ख़्वाह


तरजुमान-ए-वक़्त है तू रहनुमा-ए-फ़न है तू
हाँ लिबास-ए-संग में इक पैकर-ए-आहन है तू
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