ऐ क़ुतुब-मीनार ऐ भारत की अज़्मत के निशाँ हर घड़ी साया-फ़गन रहता है तुझ पर आसमाँ तेरे हर इक संग में पिन्हाँ है तेरी दास्ताँ दीदा-ए-हैरत से तकते हैं तुझे अहल-ए-जहाँ सर-बुलंदी पर तिरी हम हिन्दियों को नाज़ है तू हमारी ख़ुशनुमा तारीख़ का ग़म्माज़ है तेरा मस्कन अर्ज़-ए-दिल्ली रश्क-ए-हुस्न-ए-कोह-ए-क़ाफ़ चाँद-सूरज रोज़ तेरे गिर्द करते हैं तवाफ़ सारी दुनिया को है तेरी अज़्मतों का ए'तिराफ़ तुझ से होता है हमारी क़ौमीयत का इंकिशाफ़ तेरी सन्नाई ज़माने के लिए पुर-पेच है आज भी पैरिस का टावर तेरे आगे हेच है तू हमारी शान-ओ-शौकत का है ताबिंदा गवाह तुझ से रौशन है हमारे इल्म-ओ-फ़न की शाहराह तुझ पे पड़ते ही चमक उठती है हैरत से निगाह तू हमारा पासबाँ है तू हमारा ख़ैर-ख़्वाह तरजुमान-ए-वक़्त है तू रहनुमा-ए-फ़न है तू हाँ लिबास-ए-संग में इक पैकर-ए-आहन है तू