किसी के समझदार होने तक

By shariq-kaifiFebruary 29, 2024
क़ब्र क्या ढूँडना
मिट गए होंगे उस के निशाँ
कहीं भी जला कर लगा दूँ अगरबत्तियाँ
मुद्दतों बा'द भी


विर्द करते हुए सूरा-ए-फ़ातिहा का वही गूँज कानों में है
तिरा बाप क्या रोज़ पीता है
उफ़
वो जो शर्मिंदगी का सबब हो भला उस से कैसी मोहब्बत


और वैसे भी
एक बच्चे की नफ़रत से सच्चा कोई और जज़्बा नहीं
दफ़्न के वक़्त भी तो मैं दिल में कहीं उन से नाराज़ था
मगर आज ख़ुद जब मैं उस 'उम्र में हूँ


जो पापा की शायद रही होगी तब
जब मैं रूठा था उन से
मिरे दिल में एहसास-ए-जुर्म और शर्मिंदगी के सिवा कुछ नहीं
आप सुन तो रहे हैं न पापा


मु'आफ़ी मुझे चाहिए
क्या ये मुमकिन है
फिर ख़ुद से कहता हूँ शायद नहीं
वो गए


कोई रुकता नहीं है किसी के समझदार होने तलक
सच की तह में उतरने के लाइक़ गुनहगार होने तलक
46505 viewsnazmHindi