कूफ़ा-मिज़ाज
By noman-badrFebruary 28, 2024
रुको मोहब्बत के ख़ानवादे के शाहज़ादे
रुको कहाँ उजलतों में जानें लुटा रहे हो
कहाँ लहू से चराग़ रौशन किए खड़े हो
ये कैसे लोगों से ‘अहद-ए-उल्फ़त निभा रहे हो
ये लोग वो हैं जो तेरे ज़ख़्मों को घाव कर के
हवाएँ देंगे शरर को ख़ुद ही अलाव कर के
तिरी वफ़ा का जुनूँ सलामत हो ता-क़यामत
ये लोग लेकिन वफ़ाएँ बेचेंगे भाव कर के
सुनो मोहब्बत के ख़ानवादे के शाहज़ादे
ये ध्यान रखना कि तुम से पहले हमें जुनूँ था
हमें जुनूँ था कि इस क़बीले में जाँ लुटाएँ
हमें जुनूँ था कि वहशतों से सुकूँ बनाएँ
वो हम थे सहरा को जो समुंदर बना रहे थे
वो हम थे जो पत्थरों को धड़कन सिखा रहे थे
मगर ये कूफ़ा-मिज़ाज लोगों की 'आदतें हैं
इमाम उन की वफ़ा की ख़ातिर 'अलम उठाए
इमाम अपने लहू से सहरा में रंग लाए
तो ये क़बीला यज़ीद की सफ़ में जा रुकेगा
तुम्ही ग़लत थे तुम्ही ग़लत हो तुम्हें कहेगा
सुनो मोहब्बत के ख़ानवादे के शाहज़ादे
ये बेवफ़ाई का सिलसिला है नहीं रुकेगा
रुको कहाँ उजलतों में जानें लुटा रहे हो
कहाँ लहू से चराग़ रौशन किए खड़े हो
ये कैसे लोगों से ‘अहद-ए-उल्फ़त निभा रहे हो
ये लोग वो हैं जो तेरे ज़ख़्मों को घाव कर के
हवाएँ देंगे शरर को ख़ुद ही अलाव कर के
तिरी वफ़ा का जुनूँ सलामत हो ता-क़यामत
ये लोग लेकिन वफ़ाएँ बेचेंगे भाव कर के
सुनो मोहब्बत के ख़ानवादे के शाहज़ादे
ये ध्यान रखना कि तुम से पहले हमें जुनूँ था
हमें जुनूँ था कि इस क़बीले में जाँ लुटाएँ
हमें जुनूँ था कि वहशतों से सुकूँ बनाएँ
वो हम थे सहरा को जो समुंदर बना रहे थे
वो हम थे जो पत्थरों को धड़कन सिखा रहे थे
मगर ये कूफ़ा-मिज़ाज लोगों की 'आदतें हैं
इमाम उन की वफ़ा की ख़ातिर 'अलम उठाए
इमाम अपने लहू से सहरा में रंग लाए
तो ये क़बीला यज़ीद की सफ़ में जा रुकेगा
तुम्ही ग़लत थे तुम्ही ग़लत हो तुम्हें कहेगा
सुनो मोहब्बत के ख़ानवादे के शाहज़ादे
ये बेवफ़ाई का सिलसिला है नहीं रुकेगा
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