चमन के ज़र्रे ज़र्रे से सदा ख़ुशियों की आती है कि आज़ादी के नग़्मे आज बुलबुल गुनगुनाती है कली खिल कर बहारों के चमन में गीत गाती है चमन क्या आज तो सारी ख़ुदाई मुस्कुराती है बहार आकर चमन में इक नया मुज़्दा सुनाती है ज़माना रक़्स में है ज़िंदगी ख़ुशियाँ मनाती है दिया ख़ून-ए-जिगर हम ने तो गुलशन में बहार आई बहुत मुद्दत के बाद आख़िर ये जान-ए-इंतिज़ार आई दिलों की बे-क़रारी का यही ले कर क़रार आई ख़ुशा-क़िस्मत चमन में अंदलीब-ए-नग़्मा-बार आई ये आज़ादी वतन में इक नई दुनिया बसाती है चमन में अब जिधर देखो जवानी मुस्कुराती है मगर इक मख़मसे में मादर-ए-हिन्दोस्ताँ है आज उसे दरकार अहल-ए-हिन्द का अज़्म-ए-जवाँ है आज मिटाना दुश्मनों का दह्र से नाम-ओ-निशाँ है आज कमर बाँधे हुए भारत का हर पीर-ओ-जवाँ है आज है वो नग़्मा हर इक लब पर कि धरती चौंक जाती है तिरी ललकार से 'रिफ़अत' ये दुनिया थरथराती है