'महावीर'

By sudarshan-kumar-vuggalFebruary 6, 2022
अब्र-ए-गौहर-बार बन कर हिन्द में आया था तू
अहल-ए-दुनिया के लिए पैग़ाम-ए-हक़ लाया था तू
सत्य भारत में मुनी जी रूनुमा तुम से हुआ
और अहिंसा से ज़माना आश्ना तुम से हुआ


जब तुम्हारे दुश्मनों को कुछ गिला तुम से हुआ
राम सारे हो गए जब सामना तुम से हुआ
सारे आलम पर मिसाल-ए-रंग-ओ-बू छाया था तू
अह्ल-ए-दुनिया के लिए पैग़ाम-ए-हक़ लाया था तू


मैं भुला सकता नहीं आलम तिरी तस्वीर का
उस ने तो नक़्शा बदल डाला मिरी तक़दीर का
मैं हूँ क़ाइल 'वीर' का और 'वीर' की तनवीर का
कितना दिल-अफ़रोज़ है हल्क़ा तिरी ज़ंजीर का


जल्वा-ए-हक़ का वो इक बे-लौस सरमाया था तू
अह्ल-ए-दुनिया के लिए पैग़ाम-ए-हक़ लाया था तू
अब जहाँ में चार-सू इंसाँ-कुशी का दौर है
अब ज़माने की फ़ज़ा का रंग ही कुछ और है


आज के इंसान का कितना निराला तौर है
ज़ाहिरी कुछ और है और बातिनी कुछ और है
ख़ाक-ए-पाक-ए-हिंद का गंज-ए-गिराँ-माया था तू
अह्ल-ए-दुनिया के लिए पैग़ाम-ए-हक़ लाया था तू


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