आज की रात और बाक़ी है कल तो जाना ही है सफ़र पे मुझे ज़िंदगी मुंतज़िर है मुँह फाड़े ज़िंदगी ख़ाक ओ ख़ून में लुथड़ी आँख में शोला-हा-ए-तुंद लिए दो घड़ी ख़ुद को शादमाँ कर लें आज की रात और बाक़ी है चलने ही को है इक सुमूम अभी रक़्स-फ़रमा है रूह-ए-बर्बादी बरबरियत के कारवानों से ज़लज़ले में है सीना-ए-गीती ज़ौक़-ए-पिन्हाँ को कामराँ कर लें आज की रात और बाक़ी है एक पैमान-ए-मय-ए-सरजोश लुत्फ़-ए-गुफ़्तार गर्मी-ए-आग़ोश बोसे इस दर्जा आतिशीं बोसे फूँक डालें जो मेरी किश्त-ए-होश रूह यख़-बस्ता है तपाँ कर लें आज की रात और बाक़ी है एक दो और साग़र-ए-सरशार फिर तो होना ही है मुझे होशियार छेड़ना ही है साज़-ए-ज़ीस्त मुझे आग बरसाएँगे लब-ए-गुफ़्तार कुछ तबीअत तो हम रवाँ कर लें आज की रात और बाक़ी है फिर कहाँ ये हसीं सुहानी रात ये फ़राग़त ये कैफ़ के लम्हात कुछ तो आसूदगी-ए-ज़ौक़-ए-निहाँ कुछ तो तस्कीन-ए-शोरिश-ए-जज़्बात आज की रात जावेदाँ कर लें आज की रात और आज की रात