उफ़ुक़ ता उफ़ुक़ नीलगूँ आसमाँ मुसाफ़िर परिंदों की मंज़िल कहाँ बहुत दूर पीछे को उस बहर के मावरा उतरती रही बर्फ़ जमती रही तह-ब-तह आशियानों के पास तब नज़ारे नज़र-आश्ना इज़्न-ए-आवारगी ज़ाद-ए-अफ़्सुर्दगी दे के थर्राए बा-चश्म-ए-तर कि शायद बहुत दूर आगे को उस बहर के मावरा ज़मुर्रद जुड़े साहिलों ने सुना हो सलाम ईद का धूप के जश्न आहटें नग़्मा-ए-गर्म ख़ुर्शीद का उफ़ुक़ ता उफ़ुक़ नीलगूँ आसमाँ कोई शाख़-ए-गुल है न कोई मुंडेर घड़ी-दो-घड़ी पंखुड़ी जैसे पर जोड़ कर बैठ जाएँ जहाँ घड़ी-दो-घड़ी चहचहाएँ जहाँ कोई अपने दुखते को को अगर अगर में गिर गया ज़रा भी फ़ज़ाओं का दामन न भीगा न वहशी हवाओं का तूफ़ाँ रुका सितारे ब-दस्तूर नीलाहटों में चमकते रहे मिस्ल-ए-गर्दा गर्दां शब-ओ-रोज़ की चर्ख़ियाँ मुसाफ़िर परिंदों की मंज़िल कहाँ बहुत दूर पीछे को उस बहर के मावरा हर नई दिल-कुशा अग्नी मुंजमिद ज़ेर-ए-अहराम यख़-महव-ए-ख़्वाब साज़ नहरों के दरबर-ए-फस्ल-ए-बहाराँ के ताबूत सद्र नग टीलों के फूलों के ताज-ओ-गुहर मुंजमिद ज़िंदगी की फ़ुग़ाँ बहुत दूर आगे को उस बहर के मावरा वो इक रौशनी का जहाँ वो इक गुल pas-e-khaar-zaar वो इक दाना-ए-ज़ेर-ए-दाम उसे देखना और ठिठकना भी क्या चीज़ है मगर आह उस मोड़ पर आज परवाज़-ओ-आवाज़ थी हासिल-ए-मुश्त पर हासिल-ए-दास्ताँ