पीर और मुरीद

By December 16, 2017
खट-खट-खट
दर पे खड़ा है कब से आप का दीवाना
जन्नत का दरवाज़ा खोलिए मौलाना
चाँद है आधी रात हसीं है


देखने वाला कोई नहीं है
लाया है इक 'चीज़' मुरीद-ए-मस्ताना
जन्नत का दरवाज़ा खोलिए मौलाना
शैतानी के दाव चला के


लाया हूँ इक हूर भगा के
रख लीजे आग़ोश में मेरा नज़राना
जन्नत का दरवाज़ा खोलिए मौलाना
तौबा कितनी देर लगाई


हाँ हाँ मैं शैताँ हूँ भाई
आप की शम्अ-ए-रुख़ का पुराना परवाना
जन्नत का दरवाज़ा खोलिए मौलाना
चल दूँगा मैं पैर दबा के


आप को मीठी नींद सुला के
छलक न जाए मेरे सब्र का पैमाना
जन्नत का दरवाज़ा खोलिए मौलाना
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