क़ैदी

By khalilur-rahman-azmiFebruary 27, 2024
एक बार अपना बना कर जो मुझे छोड़ गई
उसी रूठी हुई ख़ुश्बू का पुजारी हूँ मैं
हर गुज़रती हुई आवाज़ बुलाती है मुझे
लम्हा लम्हा मिरी पुर्सिश के लिए आता है


सुब्ह की पहली किरन पूछती है नाम मिरा
शाम का साया मुझे छू के चला जाता है
हर दरीचा मुझे तकता है बड़ी हसरत से
और हवा ढूँढती फिरती है मिरे ग़म के चराग़


मुझ से हर रात ये कहती है मिरी सम्त आओ
मुझ से हर चाँद ने माँगे हैं मिरी रूह के दाग़
मैं किसी को न सुनाऊँगा कहानी अपनी
कुछ कहूँगा तो मैं उस राह में खो जाऊँगा


और जिस रोज़ ये ज़ंजीर मिरी टूट गई
मुझ को डर है मैं किसी और का हो जाऊँगा
41016 viewsnazmHindi