रद्द-ए-तश्कील

By abid-razaJanuary 14, 2025
एक दिन अचानक
कई लफ़्ज़
मुनकिर-नकीर की तरह
झपाक से मेरी क़ब्र में घुस आए


अक्सर की पेशानी पर सवालात के अचंभे थे
परेशानी की बात तो थी ही
मैं ने फ़ौरन गूगल और विकीपीडिया के वास्ते देने शुरू' किए
बस फिर क्या था


सारे लफ़्ज़
मेरे सामने रक़्स करते हुए
झट-पट रंग-बिरंगी आवाज़ें पहन कर
एक दूसरे से लिपट गए


ज़रा सी देर में
सारे रंग आपस में उलझ गए
और एक बुढ्ढा उल्लू
ये आहनी तख़्ती मेरे गले में डाल गया


जिस पर बे-रंग ख़त में कुंदा है
आज से ये बद-बख़्त दरीदा-दिमाग़
लफ़्ज़ों पर चढ़े रंग खुर्चा करेगा
कि यही इस की सज़ा है


तब से मैं इसी मशक़्क़त में लगा हूँ
और मुंतज़िर हूँ कि गले में पड़ी हुई तख़्ती पर लगा ज़ंग मुझे कब नज़र आएगा
17073 viewsnazmHindi