शब-ए-ज़ुल्मत

By akhlaq-ahmad-ahanMarch 24, 2022
हिज्र की रात गुज़रती ही नहीं
कब तलक बज़्म पे तारीकी रहे
कब तलक शूमी-ए-क़िस्मत का गिला
कब तलक दर्द के बढ़ने की फ़ुग़ाँ


कब तलक बे-कसी का शिकवा रहे
कब तलक बेबसी का नाला रहे
कब तलक होंगी रवाँ हालतें ये
कब तलक छाई रहें ज़ुल्मतें ये


नूर उठता है मगर क्या कीजिए
ज़ुल्म की काली घटा चार-सू है
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