शाम की उड़ान
By rashid-anwar-rashidNovember 14, 2020
शाम के सुरमई अँधेरे में
इक परिंदा उड़ान भरता है
चाहता है किसी का साथ मिले
रात की बे-क़रारियों का अज़ाब
याद कर के वो काँप उठता है
इस लिए शाम के धुँदलके में
घोंसले को वो छोड़ देता है
और मुसलसल सफ़र में रहता है
लेकिन उस का सफ़र सदा की तरह
तिश्नगी का अज़ाब सहता है
इक परिंदा उड़ान भरता है
चाहता है किसी का साथ मिले
रात की बे-क़रारियों का अज़ाब
याद कर के वो काँप उठता है
इस लिए शाम के धुँदलके में
घोंसले को वो छोड़ देता है
और मुसलसल सफ़र में रहता है
लेकिन उस का सफ़र सदा की तरह
तिश्नगी का अज़ाब सहता है
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