चाँद मेरी ज़मीं फूल मेरा वतन अपने बच्चों को मैं ने थपक थपक कर जिस रात ये लोरी सुनाई थी मेरी बे-ख़्वाब आँखें हवाओं में रस्ता टटोलते हुए बहादुर परिंदों से हर शब उलझती हैं काग़ज़ के फूलों से ये घर की रौनक़ कब तक मेरे चाँद जैसे चाँद ये माँगे की रौशनी कब तक बहुत गहरी नींद सो गए हैं मेरे ग़ाफ़िल मेरे मासूम ये जागें तो सुब्ह हो