शायद ये अँधेरा आख़िरी अँधेरा हो

By zunnurainJuly 2, 2022
चाँद मेरी ज़मीं
फूल मेरा वतन
अपने बच्चों को मैं ने
थपक थपक कर


जिस रात
ये लोरी सुनाई थी
मेरी बे-ख़्वाब आँखें
हवाओं में


रस्ता टटोलते हुए
बहादुर परिंदों से
हर शब उलझती हैं
काग़ज़ के फूलों से


ये घर की रौनक़
कब तक
मेरे चाँद जैसे चाँद
ये माँगे की रौशनी


कब तक
बहुत गहरी नींद सो गए हैं
मेरे ग़ाफ़िल मेरे मासूम
ये जागें तो


सुब्ह हो
57971 viewsnazmHindi