शायद ये अँधेरा आख़िरी अँधेरा हो
By zunnurainJuly 2, 2022
चाँद मेरी ज़मीं
फूल मेरा वतन
अपने बच्चों को मैं ने
थपक थपक कर
जिस रात
ये लोरी सुनाई थी
मेरी बे-ख़्वाब आँखें
हवाओं में
रस्ता टटोलते हुए
बहादुर परिंदों से
हर शब उलझती हैं
काग़ज़ के फूलों से
ये घर की रौनक़
कब तक
मेरे चाँद जैसे चाँद
ये माँगे की रौशनी
कब तक
बहुत गहरी नींद सो गए हैं
मेरे ग़ाफ़िल मेरे मासूम
ये जागें तो
सुब्ह हो
फूल मेरा वतन
अपने बच्चों को मैं ने
थपक थपक कर
जिस रात
ये लोरी सुनाई थी
मेरी बे-ख़्वाब आँखें
हवाओं में
रस्ता टटोलते हुए
बहादुर परिंदों से
हर शब उलझती हैं
काग़ज़ के फूलों से
ये घर की रौनक़
कब तक
मेरे चाँद जैसे चाँद
ये माँगे की रौशनी
कब तक
बहुत गहरी नींद सो गए हैं
मेरे ग़ाफ़िल मेरे मासूम
ये जागें तो
सुब्ह हो
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