तारीख़ के मुर्दा-ख़ाने से

By shahnaz-nabiNovember 18, 2020
नारी और शूदर को समान समझने वाले महा-पुरुष
इतिहास के पन्नों में खो गए हैं
होंट आज भी थरथराते हैं
लफ़्ज़ मैले न हो जाएँ


ज़मीन थी तो पथरीली
लेकिन अपना कुआँ खोदा
तो पानी मीठा निकला
फुंकारते आभूषण


संदूक़ों में बंद कर के
चाबी बुज़ुर्गों के हवाले कर दी गई
उड़ते हुए लफ़्ज़ों को मुट्ठियों में पकड़ते ही
चाँद शरमाने लगा


रौशनी का सौदा करने वालों ने
गहरे गढ़े खोद कर
किरनों को दफ़नाना चाहा
लेकिन वो ज़िंदा शिरयानों में


लहू बन कर दौड़ गईं
मसामों से फूटते उजालों की यूरिश में
बह निकले जाने कितने 'मीर' ओ 'सौदा'
कितने 'कालीदास'


उल्टी पोथी पकड़े पकड़े
जाने कब ढाई अक्षर सीधे
ढाई उल्टे पढ़े
और दरिया में डुबकी लगाने से पहले


सरस्वती को कहते सुना
दुष्यंत की अंगुश्तरी लहरों के हवाले कर दो
मछलियाँ चुग़ुल-ख़ोर होती हैं
'भरत' को अपने अंदर थामे रहो


ता-अबद
14006 viewsnazmHindi