वो अपने आँसू एक नाज़ुक हेयर ड्रायर से सुखाती है जब उस की मसनूई पलकें उस का बदन छुपाने में नाकाम हो जाती हैं दस नाख़ुन-तराश उस के नाख़ुनों की देख-भाल करते हैं वो बच्चों की तरह बरते जाने से तंग आ चुकी है पुर-कशिश बदन को मिलने वाले तमग़ों के दरमियान से वो मछली की तरह तैर कर निकल जाती है अपने तलवों के नीचे वो गहराई और ड्रामा चाहती है उस के बाल शैम्पू की शीशी पर लिखी हुई हिदायात पर सख़्ती से अमल करते हैं माहौलियाती आलूदगी का ख़याल करते हुए वो कोई बोसा नहीं देती उस का तकिया दुनिया के तमाम आशिक़ों के आँसू जज़्ब कर सकता है