वो और मैं

By safdar-raza-safiNovember 15, 2020
हयात
एक हैरत से फैली हुई आँख है
जिस की पलकों को बाहम मिले
मुद्दतें हो चुकी हैं


क़रनों से यूँही
मुसलसल ख़लाओं में तकती चली जा रही है
मनाज़िर निगलती चली जा रही है
कहीं दूर हैरत से फैली हुई आँख के पार


चेहरा है
बे-ख़ाल बे-चश्म बे-अंत चेहरा
चेहरे के मा'सूम मरमर से रुख़्सार पर
जगमगाता हुआ अश्क मैं हूँ


हैरत से फैली हुई आँख के चाक को
मैं रफ़ू कर रहा हूँ
52646 viewsnazmHindi