जब अपना फ़र्ज़ वतन-दोस्त भूल जाते हैं By Qita << मर्द मैदान में गिरते हैं ... वो शहद और शफ़क़-भरी नींदे... >> जब अपना फ़र्ज़ वतन-दोस्त भूल जाते हैं वतन-फ़रोश उसी वक़्त सर उठाते हैं अमल बग़ैर जवाहिर भी संग-रेज़े हैं अमल के सामने पत्थर भी झिलमिलाते हैं Share on: