वो शहद और शफ़क़-भरी नींदें किधर गईं By Qita << ये तो हैं चंद ही जल्वे जो... मिरी सच्ची नियाज़-मंदी का >> वो शहद और शफ़क़-भरी नींदें किधर गईं महताब से हसीं वो मिरे ख़्वाब क्या हुए ज़ानू थे जिन के मिस्ल-ए-सबा नर्म और ख़ुनुक ऐ मौसम-ए-बहार वो अहबाब क्या हुए Share on: