बड़े क़लक़ की बात है कि तुम इसे न पढ़ सके By Sher << पत्थरों के देस में शीशे क... है दिल में घर को शहर से स... >> बड़े क़लक़ की बात है कि तुम इसे न पढ़ सके हमारी ज़िंदगी तो इक खुली हुई किताब थी Share on: