बहार-ए-गुलिस्ताँ हम को न पहचाने तअज्जुब है

By salik-lakhnaviNovember 16, 2020
बहार-ए-गुलिस्ताँ हम को न पहचाने तअज्जुब है
गुलों के रुख़ पे छिड़का है बहुत ख़ून-ए-जिगर हम ने
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