हम आज क़ौस-ए-क़ुज़ह के मानिंद एक दूजे पे खिल रहे हैं By Sher << हम तोहफ़े में घड़ियाँ तो ... हथेली से ठंडा धुआँ उठ रहा... >> हम आज क़ौस-ए-क़ुज़ह के मानिंद एक दूजे पे खिल रहे हैं मुझे तो पहले से लग रहा था ये आसमानों का सिलसिला है Share on: