जिस क़दर चाहिए बिठलाइए पहरे दर पर By Sher << जनाब-ए-ख़िज़्र राह-ए-इश्क... सिपाह-ए-शाम के नेज़े पे आ... >> जिस क़दर चाहिए बिठलाइए पहरे दर पर बंद रहने के नहीं ख़्वाब में आने वाले Share on: