जो देखता हूँ ज़माने की ना-शनासी को By Sher << हाथ फिर बढ़ रहा है सू-ए-ज... दर्द की लहर में ज़िंदगी ब... >> जो देखता हूँ ज़माने की ना-शनासी को ये सोचता हूँ कि अच्छा था बे-हुनर रहता Share on: