मंज़िलें इश्क़ की आसाँ हुईं चलते चलते By Sher << टूटने पर कोई आए तो फिर ऐस... मिरे घर से ज़ियादा दूर सह... >> मंज़िलें इश्क़ की आसाँ हुईं चलते चलते और चमका तिरा नक़्श-ए-कफ़-ए-पा आख़िर-ए-शब Share on: