मेरी ही नज़र की मस्ती से सब शीशा-ओ-साग़र रक़्साँ थे By Sher << उर्दू जिसे कहते हैं तहज़ी... कभी मैं जुरअत-ए-इज़हार-ए-... >> मेरी ही नज़र की मस्ती से सब शीशा-ओ-साग़र रक़्साँ थे मेरी ही नज़र की गर्मी से सब शीशा-ओ-साग़र टूट गए Share on: