मिरी जान आज का ग़म न कर कि न जाने कातिब-ए-वक़्त ने By Sher << मिन्नत-ए-चारा-साज़ कौन कर... मिरी चश्म-ए-तन-आसाँ को बस... >> मिरी जान आज का ग़म न कर कि न जाने कातिब-ए-वक़्त ने किसी अपने कल में भी भूल कर कहीं लिख रखी हों मसर्रतें Share on: