तिरे ख़याल से रौशन है सर-ज़मीन-ए-सुख़न By Sher << कहीं सदा-ए-जरस है न गर्द-... क्यूँ चुप हैं वो बे-बात स... >> तिरे ख़याल से रौशन है सर-ज़मीन-ए-सुख़न कि जैसे ज़ीनत-ए-शब हो मह-ए-तमाम के साथ Share on: