ये पड़ी हैं सदियों से किस लिए तिरे मेरे बीच जुदाइयाँ By Sher << लहजे और आवाज़ में रक्खा ज... अगर न ज़ोहरा-जबीनों के दर... >> ये पड़ी हैं सदियों से किस लिए तिरे मेरे बीच जुदाइयाँ कभी अपने घर तू मुझे बुला कभी रास्ते मिरे घर के देख Share on: