न भूला इज़्तिराब-ए-दम-शुमारी इंतिज़ार अपना

By mirza-ghalibFebruary 27, 2024
न भूला इज़्तिराब-ए-दम-शुमारी इंतिज़ार अपना
कि आख़िर शीशा-ए-साअ'त के काम आया ग़ुबार अपना
ज़ि-बस आतिश ने फ़स्ल-ए-रंग में रंग-ए-दिगर पाया
चराग़-ए-गुल से ढूँढे है चमन में शम्अ' ख़ार अपना


असीर-ए-बे-ज़बाँ हूँ काश के सय्याद-ए-बे-पर्वा
ब-दाम-ए-जौहर-ए-आईना हो जावे शिकार अपना
मगर हो माने-ए-दामन-कुशी ज़ौक़-ए-ख़ुद-आराई
हुआ है नक़्श-बंद आईना-ए-संग-ए-मज़ार अपना


दरेग़ ऐ ना-तवानी वर्ना हम ज़ब्त-आश्नायाँ ने
तिलिस्म-ए-रंग में बाँधा था अहद-ए-उस्तुवार अपना
अगर आसूदगी है मुद्दआ'-ए-रंज-ए-बेताबी
नियाज़-ए-गर्दिश-ए-पैमाना-ए-मै रोज़गार अपना


'असद' हम वो जुनूँ-जौलाँ गदा-ए-बे-सर-ओ-पा हैं
कि है सर-पंजा-ए-मिज़्गान-ए-आहू पुश्त-ख़ार अपना
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