जिंदगी जैसे जलानी थी वैसे जला दी हमने गालिब गालिब की शायरी Pdf, ज़िन्दगी << हौंसलों का सबूत देना था क... कभी कभी रिश्तों की कीमत व... >> जिंदगी जैसे जलानी थी वैसे जला दी हमने गालिबअब धुएँ पर बहस कैसी और राख पर ऐतराज कैसा! Share on: