मंजिल भी उसकी थी Admin मे अकेला शायरी, दर्द << किताबों मैं देखो सुनहरी ह... सबसे खफा हो जाना >> मंजिल भी उसकी थी, रास्ता भी उसका था, एक मैं अकेला था, काफिला भी उसका था, साथ – साथ चलने की सोच भी उसकी थी, फ़िर रास्ता बदलने का फ़ैसला भी उसका था ! आज क्योँ अकेला हूँ? दिल सवाल करता है, लोग तो उसके थे पर क्या खुदा भी उसका था ! Share on: