ना रख उम्मीद-ए-वफ़ा किसी Admin आज़ाद परिंदे शायरी, दर्द << मैं भी कभी हँसता-खेलता था... उसने बड़ी बेरुखी से कहा >> ना रख उम्मीद-ए-वफ़ा किसी परिंदे सेजब पर निकल आते हैं तो अपने भी आशियाना भूल जाते हैं !! Share on: