AFSANCHE SHAYARI
HEARTFELT SHAYARIS ON AFSANCHE
Discover a beautiful collection of shayaris dedicated to afsanche. Let these poetic words convey the depth of your emotions. Whether you seek solace or express love, find the perfect shayari that resonates with your feelings.
चालीस पचास लठ्ठ बंद आदमियों का एक गिरोह लूट मार के लिए एक मकान की तरफ़ बढ़ रहा था। दफ़्अतन उस भीड़ को चीर कर एक दुबला पतला अधेड़ उम्र का आदमी बाहर निकला। पलट कर उसने बलवाइयों को लीडराना अंदाज़ में मुख़ातब किया
“भाईयो
इस मकान में बे-अंदाज़ा दौलत है। बेशुमार क़ीमती सामान है। आओ हम सब मिल कर इस पर क़ाबिज़ हो जाएं और माल-ए-ग़नीमत आपस में बांट लें।”
हवा में कई लाठियां लहराईं। कई मुक्के भिंचे और बुलंद बाँग नारों का एक फ़व्वारा सा छूट पड़ा।
चालीस-पचास लठ्ठ बंद आदमियों का गिरोह दुबले पतले अधेड़ उम्र के आदमी की क़ियादत में उस मकान की तरफ़ तेज़ी से बढ़ने लगा। जिसमें बे-अंदाज़ा दौलत और बेशुमार क़ीमती सामान था। मकान के सदर दरवाज़े के पास रुक कर दुबला पतला आदमी फिर बलवाइयों से मुख़ातिब हुआ
“भाईयो
इस मकान में जितना माल भी है। सब तुम्हारा है
लेकिन देखो छीना-झपटी नहीं करना… आपस में नहीं लड़ना... आओ।”
एक चिल्लाया
“दरवाज़े में ताला है।”
दूसरे ने बआवाज़-ए-बुलंद कहा
“तोड़ दो।”
“तोड़ दो... तोड़ दो।”
हवा में कई लाठियां लहराईं
कई मुक्के भिंचे और बुलंद बाँग नारों का एक फ़व्वारा सा छूट पड़ा। दुबले पतले आदमी ने हाथ के इशारे से दरवाज़ा तोड़ने वालों को रोका और मुस्कुरा कर कहा
“भाईयो ठहरो... मैं इसे चाबी से खोलता हूँ।”
ये कह कर उसने जेब से चाबियों का गुच्छा निकाला और एक चाबी मुंतख़ब करके ताले में डाली और उसे खोल दिया। शीशम का भारी भरकम दरवाज़ा एक चीख़ के साथ वा हुआ तो हुजूम दीवानावार अंदर दाख़िल होने के लिए आगे बढ़ा। दुबले पतले आदमी ने माथे का पसीना अपनी आस्तीन से पोंछते हुए कहा
“भाई
आराम आराम से
जो कुछ इस मकान में है सब तुम्हारा है फिर इस अफ़रा तफ़री की क्या ज़रूरत है?”
फ़ौरन ही हुजूम में ज़ब्त पैदा होगया। एक एक करके बलवाई मकान के अंदर दाख़िल होने लगे लेकिन जूंही चीज़ों की लूट शुरू हुई फिर धांदली मच गई। बड़ी बेरहमी से बलवाई क़ीमती चीज़ों पर हाथ साफ़ करने लगे। दुबले पतले आदमी ने जब ये मंज़र देखा तो बड़ी दुख भरी आवाज़ में लुटेरों से कहा
“भाईयो
आहिस्ता आहिस्ता... आपस में लड़ने झगड़ने की कोई ज़रूरत नहीं। नोच खसोट की भी कोई ज़रूरत नहीं। तआवुन से काम लो। अगर किसी के हाथ ज़्यादा क़ीम्तमती चीज़ आगई है तो हासिद मत बनो। इतना बड़ा मकान है
अपने लिए कोई और चीज़ ढूंढ लो। मगर ऐसा करते हुए वहशी न बनो... मार धाड़ करोगे तो चीज़ें टूट जाएंगी। इसमें नुक़्सान तुम्हारा ही है।”
लुटेरों में एक बार फिर नज़्म पैदा होगया। भरा हुआ मकान आहिस्ता आहिस्ता ख़ाली होने लगा। दुबला पतला आदमी वक़्तन फ़वक़्तन हिदायत देता रहा
“देखो भय्या ये रेडियो है... आराम से उठाओ
ऐसा न हो टूट जाए... ये इस के तार भी साथ लेते जाओ।”
“तह करलो भाई... इसे तह करलो। अख़रोट की लकड़ी की तिपाई है... हाथ दाँत की पच्ची कारी है। बड़ी नाज़ुक चीज़ है... हाँ अब ठीक है!
“नहीं नहीं... यहां मत पियो। बहक जाओगे... इसे घर ले जाओ।”
“ठहरो ठहरो
मुझे मेन स्विच बंद कर लेने दो
ऐसा न हो करंट का धक्का लग जाए।”
इतने में एक कोने से शोर बुलंद हुआ। चार बलवाई रेशमी कपड़े के एक थान पर छीना-झपटी कर रहे थे । दुबला पतला आदमी तेज़ी से उनकी तरफ़ बढ़ा और मलामत भरे लहजे में उनसे कहा
“तुम कितने बे-समझ हो। चिन्दी चिन्दी हो जाएगी ऐसे क़ीमती कपड़े की। घर में सब चीज़ें मौजूद हैं। गज़ भी होगा। तलाश करो और माप कर कपड़ा आपस में तक़सीम करलो।”
दफ़्अ'तन कुत्ते के भूंकने की आवाज़ आई
'अफ़ अफ़
अफ़' और चश्म ज़दन में एक बहुत बड़ा गद्दी कुत्ता एक जस्त के साथ अन्दर लपका और लपकते ही उस ने दो तीन लुटेरों को भंभोड़ दिया। दुबला पतला आदमी चिल्लाया
“टाइगर
टाइगर!
टाइगर जिसके ख़ौफ़नाक मुँह में एक लुटेरे का नुचा हुआ गिरेबान था। दुम हिलाता हुआ दुबले पतले आदमी की तरफ़ निगाहें नीची किए क़दम उठाने लगा। कुत्ते के आते ही सब लुटेरे भाग गए थे। सिर्फ़ एक बाक़ी रह गया था जिसके गिरेबान का टुकड़ा टाइगर के मुँह में था। उसने दुबले पतले आदमी की तरफ़ देखा और पूछा
“कौन हो तुम?”
दुबला पतला आदमी मुस्कुराया।
“इस घर का मालिक... देखो देखो... तुम्हारे हाथ से कांच का मर्तबान गिर रहा है।”
“भाईयो
इस मकान में बे-अंदाज़ा दौलत है। बेशुमार क़ीमती सामान है। आओ हम सब मिल कर इस पर क़ाबिज़ हो जाएं और माल-ए-ग़नीमत आपस में बांट लें।”
हवा में कई लाठियां लहराईं। कई मुक्के भिंचे और बुलंद बाँग नारों का एक फ़व्वारा सा छूट पड़ा।
चालीस-पचास लठ्ठ बंद आदमियों का गिरोह दुबले पतले अधेड़ उम्र के आदमी की क़ियादत में उस मकान की तरफ़ तेज़ी से बढ़ने लगा। जिसमें बे-अंदाज़ा दौलत और बेशुमार क़ीमती सामान था। मकान के सदर दरवाज़े के पास रुक कर दुबला पतला आदमी फिर बलवाइयों से मुख़ातिब हुआ
“भाईयो
इस मकान में जितना माल भी है। सब तुम्हारा है
लेकिन देखो छीना-झपटी नहीं करना… आपस में नहीं लड़ना... आओ।”
एक चिल्लाया
“दरवाज़े में ताला है।”
दूसरे ने बआवाज़-ए-बुलंद कहा
“तोड़ दो।”
“तोड़ दो... तोड़ दो।”
हवा में कई लाठियां लहराईं
कई मुक्के भिंचे और बुलंद बाँग नारों का एक फ़व्वारा सा छूट पड़ा। दुबले पतले आदमी ने हाथ के इशारे से दरवाज़ा तोड़ने वालों को रोका और मुस्कुरा कर कहा
“भाईयो ठहरो... मैं इसे चाबी से खोलता हूँ।”
ये कह कर उसने जेब से चाबियों का गुच्छा निकाला और एक चाबी मुंतख़ब करके ताले में डाली और उसे खोल दिया। शीशम का भारी भरकम दरवाज़ा एक चीख़ के साथ वा हुआ तो हुजूम दीवानावार अंदर दाख़िल होने के लिए आगे बढ़ा। दुबले पतले आदमी ने माथे का पसीना अपनी आस्तीन से पोंछते हुए कहा
“भाई
आराम आराम से
जो कुछ इस मकान में है सब तुम्हारा है फिर इस अफ़रा तफ़री की क्या ज़रूरत है?”
फ़ौरन ही हुजूम में ज़ब्त पैदा होगया। एक एक करके बलवाई मकान के अंदर दाख़िल होने लगे लेकिन जूंही चीज़ों की लूट शुरू हुई फिर धांदली मच गई। बड़ी बेरहमी से बलवाई क़ीमती चीज़ों पर हाथ साफ़ करने लगे। दुबले पतले आदमी ने जब ये मंज़र देखा तो बड़ी दुख भरी आवाज़ में लुटेरों से कहा
“भाईयो
आहिस्ता आहिस्ता... आपस में लड़ने झगड़ने की कोई ज़रूरत नहीं। नोच खसोट की भी कोई ज़रूरत नहीं। तआवुन से काम लो। अगर किसी के हाथ ज़्यादा क़ीम्तमती चीज़ आगई है तो हासिद मत बनो। इतना बड़ा मकान है
अपने लिए कोई और चीज़ ढूंढ लो। मगर ऐसा करते हुए वहशी न बनो... मार धाड़ करोगे तो चीज़ें टूट जाएंगी। इसमें नुक़्सान तुम्हारा ही है।”
लुटेरों में एक बार फिर नज़्म पैदा होगया। भरा हुआ मकान आहिस्ता आहिस्ता ख़ाली होने लगा। दुबला पतला आदमी वक़्तन फ़वक़्तन हिदायत देता रहा
“देखो भय्या ये रेडियो है... आराम से उठाओ
ऐसा न हो टूट जाए... ये इस के तार भी साथ लेते जाओ।”
“तह करलो भाई... इसे तह करलो। अख़रोट की लकड़ी की तिपाई है... हाथ दाँत की पच्ची कारी है। बड़ी नाज़ुक चीज़ है... हाँ अब ठीक है!
“नहीं नहीं... यहां मत पियो। बहक जाओगे... इसे घर ले जाओ।”
“ठहरो ठहरो
मुझे मेन स्विच बंद कर लेने दो
ऐसा न हो करंट का धक्का लग जाए।”
इतने में एक कोने से शोर बुलंद हुआ। चार बलवाई रेशमी कपड़े के एक थान पर छीना-झपटी कर रहे थे । दुबला पतला आदमी तेज़ी से उनकी तरफ़ बढ़ा और मलामत भरे लहजे में उनसे कहा
“तुम कितने बे-समझ हो। चिन्दी चिन्दी हो जाएगी ऐसे क़ीमती कपड़े की। घर में सब चीज़ें मौजूद हैं। गज़ भी होगा। तलाश करो और माप कर कपड़ा आपस में तक़सीम करलो।”
दफ़्अ'तन कुत्ते के भूंकने की आवाज़ आई
'अफ़ अफ़
अफ़' और चश्म ज़दन में एक बहुत बड़ा गद्दी कुत्ता एक जस्त के साथ अन्दर लपका और लपकते ही उस ने दो तीन लुटेरों को भंभोड़ दिया। दुबला पतला आदमी चिल्लाया
“टाइगर
टाइगर!
टाइगर जिसके ख़ौफ़नाक मुँह में एक लुटेरे का नुचा हुआ गिरेबान था। दुम हिलाता हुआ दुबले पतले आदमी की तरफ़ निगाहें नीची किए क़दम उठाने लगा। कुत्ते के आते ही सब लुटेरे भाग गए थे। सिर्फ़ एक बाक़ी रह गया था जिसके गिरेबान का टुकड़ा टाइगर के मुँह में था। उसने दुबले पतले आदमी की तरफ़ देखा और पूछा
“कौन हो तुम?”
दुबला पतला आदमी मुस्कुराया।
“इस घर का मालिक... देखो देखो... तुम्हारे हाथ से कांच का मर्तबान गिर रहा है।”
- सआदत-हसन-मंटो
बलवाई मालिक मकान को बड़ी मुश्किलों से घसीट कर बाहर ले आए।
कपड़े झाड़ कर वो उठ खड़ा हुआ और बलवाइयों से कहने लगा
“तुम मुझे मार डालो लेकिन ख़बरदार जो मेरे रुपये पैसे को हाथ लगाया।”
कपड़े झाड़ कर वो उठ खड़ा हुआ और बलवाइयों से कहने लगा
“तुम मुझे मार डालो लेकिन ख़बरदार जो मेरे रुपये पैसे को हाथ लगाया।”
- सआदत-हसन-मंटो
आग लगी तो सारा मोहल्ला जल गया... सिर्फ़ एक दुकान बच गई जिसकी पेशानी पर ये बोर्ड आवेज़ां था...
“यहां इमारत-साज़ी का जुमला सामान मिलता है।”
“यहां इमारत-साज़ी का जुमला सामान मिलता है।”
- सआदत-हसन-मंटो
“मेरी आँखों के सामने मेरी जवान बेटी को न मारो।”
“चलो इसी की मान लो… कपड़े उतार कर हाँक दो एक तरफ़।”
“चलो इसी की मान लो… कपड़े उतार कर हाँक दो एक तरफ़।”
- सआदत-हसन-मंटो
एक आदमी ने अपने लिए लकड़ी का एक बड़ा संदूक़ मुंतख़ब किया जब उसे उठाने लगा तो वो अपनी जगह से एक इंच भी न हिला। एक शख़्स ने जिसे शायद अपने मतलब की कोई चीज़ मिल ही नहीं रही थी संदूक़ उठाने की कोशिश करने वाले से कहा
“मैं तुम्हारी मदद करूं?”
संदूक़ उठाने की कोशिश करने वाला इमदाद लेने पर राज़ी होगया। उस शख़्स ने जिसे अपने मतलब की कोई चीज़ मिल नहीं रही थी। अपने मज़बूत हाथों से संदूक़ को जुंबिश दी और उठा कर अपनी पीठ पर धर लिया... दूसरे ने सहारा दिया... दोनों बाहर निकले।
संदूक़ बहुत बोझल था। उसके वज़न के नीचे उठाने वाले की पीठ चटख़ रही थी। टांगें दोहरी होती जा रही थीं मगर इनाम की तवक़्क़ो ने इस जिस्मानी मशक़्क़त का एहसास नीम मुर्दा कर दिया था।
संदूक़ उठाने वाले के मुक़ाबले में संदूक़ को मुंतख़ब करने वाला बहुत ही कमज़ोर था। सारा रस्ता वो सिर्फ़ एक हाथ से सहारा दे कर अपना हक़ क़ायम रखता रहा। जब दोनों महफ़ूज़ मक़ाम पर पहुंच गए तो संदूक़ को एक तरफ़ रख कर सारी मशक़्क़त बर्दाश्त करने वाले ने कहा
“बोलो। इस संदूक़ के माल में से मुझे कितना मिलेगा।”
संदूक़ पर पहली नज़र डालने वाले ने जवाब दिया
“एक चौथाई।”
“बहुत कम है।”
“कम बिल्कुल नहीं ज़्यादा है... इसलिए कि सबसे पहले मैंने ही इस पर हाथ डाला था।”
“ठीक है
लेकिन यहां तक इस कमर तोड़ बोझ को उठा के लाया कौन है?”
“आधे आधे पर राज़ी होते हो?”
“ठीक है… खोलो संदूक़।”
संदूक़ खोला गया तो उसमें से एक आदमी बाहर निकला। हाथ में तलवार थी। बाहर निकलते ही उसने दोनों हिस्सा दारों को चार हिस्सों में तक़सीम कर दिया।
“मैं तुम्हारी मदद करूं?”
संदूक़ उठाने की कोशिश करने वाला इमदाद लेने पर राज़ी होगया। उस शख़्स ने जिसे अपने मतलब की कोई चीज़ मिल नहीं रही थी। अपने मज़बूत हाथों से संदूक़ को जुंबिश दी और उठा कर अपनी पीठ पर धर लिया... दूसरे ने सहारा दिया... दोनों बाहर निकले।
संदूक़ बहुत बोझल था। उसके वज़न के नीचे उठाने वाले की पीठ चटख़ रही थी। टांगें दोहरी होती जा रही थीं मगर इनाम की तवक़्क़ो ने इस जिस्मानी मशक़्क़त का एहसास नीम मुर्दा कर दिया था।
संदूक़ उठाने वाले के मुक़ाबले में संदूक़ को मुंतख़ब करने वाला बहुत ही कमज़ोर था। सारा रस्ता वो सिर्फ़ एक हाथ से सहारा दे कर अपना हक़ क़ायम रखता रहा। जब दोनों महफ़ूज़ मक़ाम पर पहुंच गए तो संदूक़ को एक तरफ़ रख कर सारी मशक़्क़त बर्दाश्त करने वाले ने कहा
“बोलो। इस संदूक़ के माल में से मुझे कितना मिलेगा।”
संदूक़ पर पहली नज़र डालने वाले ने जवाब दिया
“एक चौथाई।”
“बहुत कम है।”
“कम बिल्कुल नहीं ज़्यादा है... इसलिए कि सबसे पहले मैंने ही इस पर हाथ डाला था।”
“ठीक है
लेकिन यहां तक इस कमर तोड़ बोझ को उठा के लाया कौन है?”
“आधे आधे पर राज़ी होते हो?”
“ठीक है… खोलो संदूक़।”
संदूक़ खोला गया तो उसमें से एक आदमी बाहर निकला। हाथ में तलवार थी। बाहर निकलते ही उसने दोनों हिस्सा दारों को चार हिस्सों में तक़सीम कर दिया।
- सआदत-हसन-मंटो
वो अपने घर का तमाम ज़रूरी सामान एक ट्रक में लदवा कर दूसरे शहर जा रहा था कि रास्ते में लोगों ने उसे रोक लिया।
एक ने ट्रक के माल-ओ-अस्बाब पर हरीसाना नज़र डालते हुए कहा
“देखो यार किस मज़े से इतना माल अकेला उड़ाए चला जा रहा था।”
अस्बाब के मालिक ने मुस्कुरा कर कहा
“जनाब ये माल मेरा अपना है।”
दो तीन आदमी हंसे
“हम सब जानते हैं।”
एक आदमी चिल्लाया
“लूट लो
ये अमीर आदमी है… ट्रक लेकर चोरियां करता है।”
एक ने ट्रक के माल-ओ-अस्बाब पर हरीसाना नज़र डालते हुए कहा
“देखो यार किस मज़े से इतना माल अकेला उड़ाए चला जा रहा था।”
अस्बाब के मालिक ने मुस्कुरा कर कहा
“जनाब ये माल मेरा अपना है।”
दो तीन आदमी हंसे
“हम सब जानते हैं।”
एक आदमी चिल्लाया
“लूट लो
ये अमीर आदमी है… ट्रक लेकर चोरियां करता है।”
- सआदत-हसन-मंटो
“देखो यार। तुम ने ब्लैक मार्केट के दाम भी लिए और ऐसा रद्दी पेट्रोल दिया कि एक दुकान भी न जली।”
- सआदत-हसन-मंटो
छुरी पेट चाक करती हुई नाफ़ के नीचे तक चली गई।
इज़ार-बंद कट गया।
छुरी मारने वाले के मुँह से दफ़्अतन कलमा-ए-तास्सुफ़ निकला
“चे चे चे चे… मिश्टेक हो गया।”
इज़ार-बंद कट गया।
छुरी मारने वाले के मुँह से दफ़्अतन कलमा-ए-तास्सुफ़ निकला
“चे चे चे चे… मिश्टेक हो गया।”
- सआदत-हसन-मंटो
बड़ी मुश्किल से मियाँ-बीवी घर का थोड़ा असासा बचाने में कामयाब हुए। जवान लड़की थी
उसका कोई पता न चला। छोटी सी बच्ची थी उसको माँ ने अपने सीने के साथ चिमटाये रखा। एक भूरी भैंस थी उसको बलवाई हाँक कर ले गए। गाय बच गई मगर उसका बछड़ा न मिला।
मियाँ-बीवी
उनकी छोटी लड़की और गाय एक जगह छुपे हुए थे। सख़्त अंधेरी रात थी। बच्ची ने डर के रोना शुरू किया। ख़ामोश फ़ज़ा में जैसे कोई ढोल पीटने लगा। माँ ने ख़ौफ़-ज़दा हो कर बच्ची के मुँह पर हाथ रख दिया। कि दुश्मन सुन न ले। आवाज़ दब गई। बाप ने एहतियातन ऊपर गाढ़े की मोटी चादर डाल दी।
थोड़ी देर के बाद दूर से किसी बछड़े की आवाज़ आई। गाय के कान खड़े हुए। उठी और इधर उधर दीवानावार दौड़ती डकारने लगी। उसको चुप कराने की बहुत कोशिश की गई मगर बे-सूद।
शोर सुन कर दुश्मन आ पहुँचा। दूर से मशा'लों की रौशनी दिखाई। बीवी ने अपने मियाँ से बड़े ग़ुस्से के साथ कहा
“तुम क्यूँ उस हैवान को अपने साथ ले आए थे।”
उसका कोई पता न चला। छोटी सी बच्ची थी उसको माँ ने अपने सीने के साथ चिमटाये रखा। एक भूरी भैंस थी उसको बलवाई हाँक कर ले गए। गाय बच गई मगर उसका बछड़ा न मिला।
मियाँ-बीवी
उनकी छोटी लड़की और गाय एक जगह छुपे हुए थे। सख़्त अंधेरी रात थी। बच्ची ने डर के रोना शुरू किया। ख़ामोश फ़ज़ा में जैसे कोई ढोल पीटने लगा। माँ ने ख़ौफ़-ज़दा हो कर बच्ची के मुँह पर हाथ रख दिया। कि दुश्मन सुन न ले। आवाज़ दब गई। बाप ने एहतियातन ऊपर गाढ़े की मोटी चादर डाल दी।
थोड़ी देर के बाद दूर से किसी बछड़े की आवाज़ आई। गाय के कान खड़े हुए। उठी और इधर उधर दीवानावार दौड़ती डकारने लगी। उसको चुप कराने की बहुत कोशिश की गई मगर बे-सूद।
शोर सुन कर दुश्मन आ पहुँचा। दूर से मशा'लों की रौशनी दिखाई। बीवी ने अपने मियाँ से बड़े ग़ुस्से के साथ कहा
“तुम क्यूँ उस हैवान को अपने साथ ले आए थे।”
- सआदत-हसन-मंटो
“ख़ू
एक दम जल्दी बोलो
तुम कौन ऐ?”
“मैं... मैं...”
“ख़ू शैतान का बच्चा जल्दी बोलो... इंदू ऐ या मुस्लिमीन?”
“मुस्लिमीन।”
“ख़ू तुम्हारा रसूल कौन है?”
“मोहम्मद ख़ान।”
“टीक ऐ...जाओ।”
एक दम जल्दी बोलो
तुम कौन ऐ?”
“मैं... मैं...”
“ख़ू शैतान का बच्चा जल्दी बोलो... इंदू ऐ या मुस्लिमीन?”
“मुस्लिमीन।”
“ख़ू तुम्हारा रसूल कौन है?”
“मोहम्मद ख़ान।”
“टीक ऐ...जाओ।”
- सआदत-हसन-मंटो
“कुछ नहीं दोस्त... इतनी मेहनत करने पर सिर्फ़ एक बक्स हाथ लगा था पर इस में भी साला सुअर का गोश्त निकला।”
- सआदत-हसन-मंटो
दस राउंड चलाने और तीन आदमियों को ज़ख़्मी करने के बाद पठान भी आख़िर सुर्ख़-रु हो ही गया।
एक अफ़रा तफ़री मची थी। लोग एक दूसरे पर गिर रहे थे। छीना झपटी हो रही थी। मार धाड़ भी जारी थी।
पठान अपनी बंदूक़ लिए घुसा और तक़रीबन एक घंटा कुश्ती लड़ने के बाद थर्मस बोतल पर हाथ साफ़ करने में कामयाब होगया।
पुलिस पहुंची तो सब भागे... पठान भी।
एक गोली उसके दाहिने कान को चाटती हुई निकल गई। पठान ने उसकी बिल्कुल परवाह न की और सुर्ख़ रंग की थर्मस बोतल को अपने हाथ में मज़बूती से थामे रखा।
अपने दोस्तों के पास पहुंच कर उसने सब को बड़े फ़ख़्रिया अंदाज़ में थर्मस बोतल दिखाई। एक ने मुस्कुरा कर कहा
“ख़ान साहब आप ये क्या उठा लाए हैं।”
ख़ान साहब ने पसंदीदा नज़रों से बोतल के चमकते हुए ढकने को देखा और पूछा
“क्यूँ?”
“ये तो ठंडी चीज़ें ठंडी और गर्म चीज़ें गर्म रखने वाली बोतल है।”
ख़ान साहब ने बोतल अपनी जेब में रख लो
“खू
अम इसमें निस्वार डालेगा... गर्मियों में गर्म रहेगी। सर्दियों में सर्द!
एक अफ़रा तफ़री मची थी। लोग एक दूसरे पर गिर रहे थे। छीना झपटी हो रही थी। मार धाड़ भी जारी थी।
पठान अपनी बंदूक़ लिए घुसा और तक़रीबन एक घंटा कुश्ती लड़ने के बाद थर्मस बोतल पर हाथ साफ़ करने में कामयाब होगया।
पुलिस पहुंची तो सब भागे... पठान भी।
एक गोली उसके दाहिने कान को चाटती हुई निकल गई। पठान ने उसकी बिल्कुल परवाह न की और सुर्ख़ रंग की थर्मस बोतल को अपने हाथ में मज़बूती से थामे रखा।
अपने दोस्तों के पास पहुंच कर उसने सब को बड़े फ़ख़्रिया अंदाज़ में थर्मस बोतल दिखाई। एक ने मुस्कुरा कर कहा
“ख़ान साहब आप ये क्या उठा लाए हैं।”
ख़ान साहब ने पसंदीदा नज़रों से बोतल के चमकते हुए ढकने को देखा और पूछा
“क्यूँ?”
“ये तो ठंडी चीज़ें ठंडी और गर्म चीज़ें गर्म रखने वाली बोतल है।”
ख़ान साहब ने बोतल अपनी जेब में रख लो
“खू
अम इसमें निस्वार डालेगा... गर्मियों में गर्म रहेगी। सर्दियों में सर्द!
- सआदत-हसन-मंटो
“मरा नहीं... देखो अभी जान बाक़ी है।”
“रहने दो यार... मैं थक गया हूँ।”
“रहने दो यार... मैं थक गया हूँ।”
- सआदत-हसन-मंटो
'अ' अपने दोस्त 'ब' को अपना हम-मज़हब ज़ाहिर करके उसे महफ़ूज़ मक़ाम पर पहुंचाने के लिए मिल्ट्री के एक दस्ते के साथ रवाना हुआ।
रास्ते में 'ब' ने जिसका मज़हब मस्लिहतन बदल दिया गया था। मिल्ट्री वालों से पूछा
“क्यूँ जनाब आस पास कोई वारदात तो नहीं हुई?”
जवाब मिला
“कोई ख़ास नहीं… फ़लां मोहल्ले में अलबत्ता एक कुत्ता मारा गया।”
सहम कर 'ब' ने पूछा
“कोई और ख़बर...”
जवाब मिला
“ख़ास नहीं... नहर में तीन कुत्तियों की लाशें मिलीं।”
'अ' ने 'ब' की ख़ातिर मिल्ट्री वालों से कहा
“मिल्ट्री कुछ इंतिज़ाम नहीं करती।”
जवाब मिल
“क्यूँ नहीं... सब काम उसी की निगरानी में होता है।”
रास्ते में 'ब' ने जिसका मज़हब मस्लिहतन बदल दिया गया था। मिल्ट्री वालों से पूछा
“क्यूँ जनाब आस पास कोई वारदात तो नहीं हुई?”
जवाब मिला
“कोई ख़ास नहीं… फ़लां मोहल्ले में अलबत्ता एक कुत्ता मारा गया।”
सहम कर 'ब' ने पूछा
“कोई और ख़बर...”
जवाब मिला
“ख़ास नहीं... नहर में तीन कुत्तियों की लाशें मिलीं।”
'अ' ने 'ब' की ख़ातिर मिल्ट्री वालों से कहा
“मिल्ट्री कुछ इंतिज़ाम नहीं करती।”
जवाब मिल
“क्यूँ नहीं... सब काम उसी की निगरानी में होता है।”
- सआदत-हसन-मंटो
“पकड़ लो... पकड़ लो... देखो जाने न पाए।”
शिकार थोड़ी सी दौड़ धूप के बाद पकड़ लिया गया।
जब नेज़े उसके आर पार होने के लिए आगे बढ़े तो उसने लर्ज़ां आवाज़ में गिड़गिड़ा कर कहा
“मुझे न मारो... मुझे न मारो... मैं ता'तीलों में अपने घर जा रहा हूँ।”
शिकार थोड़ी सी दौड़ धूप के बाद पकड़ लिया गया।
जब नेज़े उसके आर पार होने के लिए आगे बढ़े तो उसने लर्ज़ां आवाज़ में गिड़गिड़ा कर कहा
“मुझे न मारो... मुझे न मारो... मैं ता'तीलों में अपने घर जा रहा हूँ।”
- सआदत-हसन-मंटो
गाड़ी रुकी हुई थी। तीन बंदूक़्ची एक डिब्बे के पास आए।
खिड़कियों में से अंदर झांक कर उन्हों ने मुसाफ़िरों से पूछा
“क्यूँ जनाब कोई मुर्ग़ा है।”
एक मुसाफ़िर कुछ कहते कहते रुक गया। बाक़ियों ने जवाब दिया
“जी नहीं।”
थोड़ी देर के बाद चार नेज़ा बर्दार आए। खिड़कियों में से अंदर झाँक कर उन्होंने मुसाफ़िरों से पूछा
“क्यूँ जनाब कोई मुर्ग़ा है।”
उस मुसाफ़िर ने जो पहले कुछ कहते कहते रुक गया था जवाब दिया
“जी मालूम नहीं… आप अंदर आ के संडास में देख लीजिए।”
नेज़ा बर्दार अंदर दाख़िल हुए। संडास तोड़ा गया तो उसमें से एक मुर्ग़ा निकल आया।
एक नेज़ा बर्दार ने कहा
“कर दो हलाल।”
दूसरे ने कहा
“नहीं यहां नहीं। डिब्बा ख़राब हो जाएगा… बाहर ले चलो।”
खिड़कियों में से अंदर झांक कर उन्हों ने मुसाफ़िरों से पूछा
“क्यूँ जनाब कोई मुर्ग़ा है।”
एक मुसाफ़िर कुछ कहते कहते रुक गया। बाक़ियों ने जवाब दिया
“जी नहीं।”
थोड़ी देर के बाद चार नेज़ा बर्दार आए। खिड़कियों में से अंदर झाँक कर उन्होंने मुसाफ़िरों से पूछा
“क्यूँ जनाब कोई मुर्ग़ा है।”
उस मुसाफ़िर ने जो पहले कुछ कहते कहते रुक गया था जवाब दिया
“जी मालूम नहीं… आप अंदर आ के संडास में देख लीजिए।”
नेज़ा बर्दार अंदर दाख़िल हुए। संडास तोड़ा गया तो उसमें से एक मुर्ग़ा निकल आया।
एक नेज़ा बर्दार ने कहा
“कर दो हलाल।”
दूसरे ने कहा
“नहीं यहां नहीं। डिब्बा ख़राब हो जाएगा… बाहर ले चलो।”
- सआदत-हसन-मंटो
चलती गाड़ी रोक ली गई। जो दूसरे मज़हब के थे उनको निकाल निकाल कर तलवारों और गोलियों से हलाक कर दिया गया।
इससे फ़ारिग़ हो कर गाड़ी के बाक़ी मुसाफ़िरों की हलवे
दूध और फलों से तवाज़ो की गई।
गाड़ी चलने से पहले तवाज़ो करने वालों के मुंतज़िम ने मुसाफ़िरों को मुख़ातब करके कहा
“भाईयो और बहनो! हमें गाड़ी की आमद की इत्तिला बहुत देर में मिली। यही वजह है कि हम जिस तरह चाहते थे उस तरह आपकी ख़िदमत न कर सके।”
इससे फ़ारिग़ हो कर गाड़ी के बाक़ी मुसाफ़िरों की हलवे
दूध और फलों से तवाज़ो की गई।
गाड़ी चलने से पहले तवाज़ो करने वालों के मुंतज़िम ने मुसाफ़िरों को मुख़ातब करके कहा
“भाईयो और बहनो! हमें गाड़ी की आमद की इत्तिला बहुत देर में मिली। यही वजह है कि हम जिस तरह चाहते थे उस तरह आपकी ख़िदमत न कर सके।”
- सआदत-हसन-मंटो
“मैंने उसकी शहरग पर छुरी रखी। हौले हौले फेरी और उस को हलाल कर दिया।
“ये तुम ने क्या किया?”
“क्यूँ?”
“उसको हलाल क्यूँ किया?”
“मज़ा आता है इस तरह।”
“मज़ा आता है के बच्चे
तुझे झटका करना चाहिए था... इस तरह।”
और हलाल करने वाले की गर्दन का झटका हो गया।
“ये तुम ने क्या किया?”
“क्यूँ?”
“उसको हलाल क्यूँ किया?”
“मज़ा आता है इस तरह।”
“मज़ा आता है के बच्चे
तुझे झटका करना चाहिए था... इस तरह।”
और हलाल करने वाले की गर्दन का झटका हो गया।
- सआदत-हसन-मंटो
लबलबी दबी... पिस्तौल से झुँझला कर गोली बाहर निकली।
खिड़की में से बाहर झांकने वाला आदमी उसी जगह दोहरा होगया।
लबलबी थोड़ी देर के बाद फिर दबी... दूसरी गोली भनभनाती हुई बाहर निकली।
सड़क पर माशकी की मशक फटी। औंधे मुँह गिरा और उसका लहू मशक के पानी में हल हो कर बहने लगा।
लबलबी तीसरी बार दबी... निशाना चूक गया। गोली एक दीवार में जज़्ब होगई।
चौथी गोली एक बूढ़ी औरत की पीठ में लगी... वो चीख़ भी न सकी और वहीं ढेर होगई।
पांचवीं और छट्टी गोली बेकार होगई। कोई हलाक हुआ न ज़ख़्मी।
गोलियां चलाने वाला भन्ना गया। दफ़्अ'तन सड़क पर एक छोटा सा बच्चा दौड़ता दिखाई दिया। गोलियां चलाने वाले ने पिस्तौल का मुँह उस तरफ़ मोड़ा।
उसके साथी ने कहा
“ये क्या करते हो?”
गोलियां चलाने वाले ने पूछा
“क्यूँ?”
“गोलियां तो ख़त्म होचुकी हैं।”
“तुम ख़ामोश रहो... इतने से बच्चे को क्या मालूम?”
खिड़की में से बाहर झांकने वाला आदमी उसी जगह दोहरा होगया।
लबलबी थोड़ी देर के बाद फिर दबी... दूसरी गोली भनभनाती हुई बाहर निकली।
सड़क पर माशकी की मशक फटी। औंधे मुँह गिरा और उसका लहू मशक के पानी में हल हो कर बहने लगा।
लबलबी तीसरी बार दबी... निशाना चूक गया। गोली एक दीवार में जज़्ब होगई।
चौथी गोली एक बूढ़ी औरत की पीठ में लगी... वो चीख़ भी न सकी और वहीं ढेर होगई।
पांचवीं और छट्टी गोली बेकार होगई। कोई हलाक हुआ न ज़ख़्मी।
गोलियां चलाने वाला भन्ना गया। दफ़्अ'तन सड़क पर एक छोटा सा बच्चा दौड़ता दिखाई दिया। गोलियां चलाने वाले ने पिस्तौल का मुँह उस तरफ़ मोड़ा।
उसके साथी ने कहा
“ये क्या करते हो?”
गोलियां चलाने वाले ने पूछा
“क्यूँ?”
“गोलियां तो ख़त्म होचुकी हैं।”
“तुम ख़ामोश रहो... इतने से बच्चे को क्या मालूम?”
- सआदत-हसन-मंटो
सुबह छः बजे पेट्रोल पंप के पास हाथ गाड़ी में बर्फ़ बेचने वाले के छुरा घोंपा गया…
सात बजे तक उसकी लाश लुक बिछी सड़क पर पड़ी रही और उस पर बर्फ़ पानी बन बन गिरती रही।
सवा सात बजे पुलिस लाश उठा कर ले गई। बर्फ़ और ख़ून वहीं सड़क पर पड़े रहे।
एक टाँगा पास से गुज़रा। बच्चे ने सड़क पर जीते जीते ख़ून के जमे हुए चमकीले लोथड़े की तरफ़ देखा।
उसके मुँह में पानी भर आया। अपनी माँ का बाज़ू खींच कर बच्चे ने उंगली से उसकी तरफ़ इशारा किया
“देखो मम्मी जैली!
सात बजे तक उसकी लाश लुक बिछी सड़क पर पड़ी रही और उस पर बर्फ़ पानी बन बन गिरती रही।
सवा सात बजे पुलिस लाश उठा कर ले गई। बर्फ़ और ख़ून वहीं सड़क पर पड़े रहे।
एक टाँगा पास से गुज़रा। बच्चे ने सड़क पर जीते जीते ख़ून के जमे हुए चमकीले लोथड़े की तरफ़ देखा।
उसके मुँह में पानी भर आया। अपनी माँ का बाज़ू खींच कर बच्चे ने उंगली से उसकी तरफ़ इशारा किया
“देखो मम्मी जैली!
- सआदत-हसन-मंटो
लूट खसूट का बाज़ार गर्म था। इस गर्मी में इज़ाफ़ा होगया। जब चारों तरफ़ आग भड़कने लगी। एक आदमी हारमोनियम की पेटी उठाए ख़ुश ख़ुश गाता जा रहा था...
'जब तुम ही गए परदेस लगा कर ठेस ओ पीतम प्यारा
दुनिया में कौन हमारा।'
एक छोटी उम्र का लड़का झोली में पापडों का अंबार डाले भागा जा रहा था... ठोकर लगी तो पापडों की एक गड्डी उसकी झोली में से गिर पड़ी। लड़का उसे उठाने के लिए झुका तो एक आदमी जो सर पर सिलाई की मशीन उठाए हुए था उससे कहा
“रहने दे बेटा रहने दे। अपने आप भुन जाऐंगे।”
बाज़ार में ढब से एक भरी हुई बोरी गिरी। एक शख़्स ने जल्दी से बढ़ कर अपने छुरे से उसका पेट चाक किया... आंतों के बजाय शक्कर
सफ़ेद सफ़ेद दानों वाली शक्कर उबल कर बाहर निकल आई। लोग जमा हो गए और अपनी झोलियां भरने लगे। एक आदमी कुर्ते के बगै़र था। उसने जल्दी से अपना तहबंद खोला और मुट्ठियाँ भर भर उसमें डालने लगा।
“हट जाओ... हट जाओ... एक ताँगा ताज़ा ताज़ा रोग़न-शुदा अलमारियों से लदा हुआ गुज़र गया।
ऊंचे मकान की खिड़की में से मलमल का थान फड़फड़ाता हुआ बाहर निकला... शोले की ज़बान ने हौले से उसे चाटा... सड़क तक पहुंचा तो राख का ढेर था।
“पूं पूं... पूं पूं...” मोटर के हॉर्न की आवाज़ के साथ दो औरतों की चीख़ें भी थीं।
लोहे का एक सैफ़ दस पंद्रह आदमियों ने खींच कर बाहर निकाला और लाठियों की मदद से उसको खोलना शुरू किया।
“काउ ऐंड गोट।” दूध के कई टीन दोनों हाथ पर उठाए अपनी ठोढ़ी से उनको सहारा दिए एक आदमी दुकान से बाहर निकला और आहिस्ता आहिस्ता बाज़ार में चलने लगा।
बुलंद आवाज़ आई
“आओ आओ लीमोनीड की बोतलें पियो... गर्मी का मौसम है।” गले में मोटर का टायर डाले हुए आदमी ने दो बोतलें लीं और शुक्रिया अदा किए बगै़र चल दिया।
एक आवाज़ आई
“कोई आग बुझाने वालों को तो इत्तिला दे दे… सारा माल जल जाएगा।” किसी ने इस मुफ़ीद मश्वरे की तरफ़ तवज्जो न दी।
लूट खसोट का बाज़ार इसी तरह गर्म रहा और इस गर्मी में चारों तरफ़ भड़कने वाली आग बदस्तूर इज़ाफ़ा करती रही। बहुत देर के बाद तड़तड़ की आवाज़ आई। गोलियां चलने लगीं।
पुलिस को बाज़ार ख़ाली नज़र आया… लेकिन दूर
धुएँ में मलफ़ूफ़ मोटर के पास एक आदमी का साया दिखाई दिया। पुलिस के सिपाही सीटियां बजाते उसकी तरफ़ लपके... साया तेज़ी से धुएँ के अंदर घुस गया। पुलिस के सिपाही भी उसके तआ'क़ुब में गए। धुएँ का इलाक़ा ख़त्म हुआ तो पुलिस के सिपाहियों ने देखा कि एक कश्मीरी मज़दूर पीठ पर वज़नी बोरी उठाए भागा चला जा रहा है। सीटियों के गले ख़ुश्क होगए मगर वो कश्मीरी मज़दूर न रुका। उसकी पीठ पर वज़न था। मा'मूली वज़न नहीं। एक भरी हुई बोरी थी लेकिन वो यूं दौड़ रहा था जैसे पीठ पर कुछ है ही नहीं।
सिपाही हांपने लगे। एक ने तंग आ कर पिस्तौल निकाला और दाग़ दिया। गोली कश्मीरी मज़दूर की पिंडली में लगी। बोरी उसकी पीठ पर से गिर पड़ी। घबरा कर उसने अपने पीछे आहिस्ता आहिस्ता भागते हुए सिपाहियों को देखा। पिंडली से बहते हुए ख़ून की तरफ़ भी उसने ग़ौर किया। लेकिन एक ही झटके से बोरी उठाई और पीठ पर डाल कर फिर भागने लगा।
सिपाहियों ने सोचा
“जाने दो जहन्नम में जाए।”
एक दम लंगड़ाता कश्मीरी मज़दूर लड़खड़ाया और गिर पड़ा। बोरी उसके ऊपर आ रही। सिपाहियों ने उसे पकड़ लिया और बोरी समेत ले गए। रास्ते में कश्मीरी मज़दूर ने बारहा कहा
“हज़रत
आप मुझे क्यूँ पकड़ती है... मैं तो ग़रीब आदमी होती... चावल की एक बोरी लेती... घर में खाती... आप नाहक़ मुझे गोली मारती।” लेकिन उसकी एक न सुनी गई।
थाने में भी कश्मीरी मज़दूर ने अपनी सफ़ाई में बहुत कुछ कहा। “हज़रत
दूसरा लोग बड़ा बड़ा माल उठाती... मैं तो फ़क़त एक चावल की बोरी लेती... हज़रत
मैं तो ग़रीब होती। हर रोज़ भात खाती।”
जब वो थक हार गया तो उसने अपनी मैली टोपी से माथे का पसीना पोंछा और चावलों की बोरी की तरफ़ हसरत भरी निगाहों से देख कर थानेदार के आगे हाथ फैला कर कहा
“अच्छा हज़रत
तुम बोरी अपने पास रख... मैं अपनी मज़दूरी मांगती... चार आने!
'जब तुम ही गए परदेस लगा कर ठेस ओ पीतम प्यारा
दुनिया में कौन हमारा।'
एक छोटी उम्र का लड़का झोली में पापडों का अंबार डाले भागा जा रहा था... ठोकर लगी तो पापडों की एक गड्डी उसकी झोली में से गिर पड़ी। लड़का उसे उठाने के लिए झुका तो एक आदमी जो सर पर सिलाई की मशीन उठाए हुए था उससे कहा
“रहने दे बेटा रहने दे। अपने आप भुन जाऐंगे।”
बाज़ार में ढब से एक भरी हुई बोरी गिरी। एक शख़्स ने जल्दी से बढ़ कर अपने छुरे से उसका पेट चाक किया... आंतों के बजाय शक्कर
सफ़ेद सफ़ेद दानों वाली शक्कर उबल कर बाहर निकल आई। लोग जमा हो गए और अपनी झोलियां भरने लगे। एक आदमी कुर्ते के बगै़र था। उसने जल्दी से अपना तहबंद खोला और मुट्ठियाँ भर भर उसमें डालने लगा।
“हट जाओ... हट जाओ... एक ताँगा ताज़ा ताज़ा रोग़न-शुदा अलमारियों से लदा हुआ गुज़र गया।
ऊंचे मकान की खिड़की में से मलमल का थान फड़फड़ाता हुआ बाहर निकला... शोले की ज़बान ने हौले से उसे चाटा... सड़क तक पहुंचा तो राख का ढेर था।
“पूं पूं... पूं पूं...” मोटर के हॉर्न की आवाज़ के साथ दो औरतों की चीख़ें भी थीं।
लोहे का एक सैफ़ दस पंद्रह आदमियों ने खींच कर बाहर निकाला और लाठियों की मदद से उसको खोलना शुरू किया।
“काउ ऐंड गोट।” दूध के कई टीन दोनों हाथ पर उठाए अपनी ठोढ़ी से उनको सहारा दिए एक आदमी दुकान से बाहर निकला और आहिस्ता आहिस्ता बाज़ार में चलने लगा।
बुलंद आवाज़ आई
“आओ आओ लीमोनीड की बोतलें पियो... गर्मी का मौसम है।” गले में मोटर का टायर डाले हुए आदमी ने दो बोतलें लीं और शुक्रिया अदा किए बगै़र चल दिया।
एक आवाज़ आई
“कोई आग बुझाने वालों को तो इत्तिला दे दे… सारा माल जल जाएगा।” किसी ने इस मुफ़ीद मश्वरे की तरफ़ तवज्जो न दी।
लूट खसोट का बाज़ार इसी तरह गर्म रहा और इस गर्मी में चारों तरफ़ भड़कने वाली आग बदस्तूर इज़ाफ़ा करती रही। बहुत देर के बाद तड़तड़ की आवाज़ आई। गोलियां चलने लगीं।
पुलिस को बाज़ार ख़ाली नज़र आया… लेकिन दूर
धुएँ में मलफ़ूफ़ मोटर के पास एक आदमी का साया दिखाई दिया। पुलिस के सिपाही सीटियां बजाते उसकी तरफ़ लपके... साया तेज़ी से धुएँ के अंदर घुस गया। पुलिस के सिपाही भी उसके तआ'क़ुब में गए। धुएँ का इलाक़ा ख़त्म हुआ तो पुलिस के सिपाहियों ने देखा कि एक कश्मीरी मज़दूर पीठ पर वज़नी बोरी उठाए भागा चला जा रहा है। सीटियों के गले ख़ुश्क होगए मगर वो कश्मीरी मज़दूर न रुका। उसकी पीठ पर वज़न था। मा'मूली वज़न नहीं। एक भरी हुई बोरी थी लेकिन वो यूं दौड़ रहा था जैसे पीठ पर कुछ है ही नहीं।
सिपाही हांपने लगे। एक ने तंग आ कर पिस्तौल निकाला और दाग़ दिया। गोली कश्मीरी मज़दूर की पिंडली में लगी। बोरी उसकी पीठ पर से गिर पड़ी। घबरा कर उसने अपने पीछे आहिस्ता आहिस्ता भागते हुए सिपाहियों को देखा। पिंडली से बहते हुए ख़ून की तरफ़ भी उसने ग़ौर किया। लेकिन एक ही झटके से बोरी उठाई और पीठ पर डाल कर फिर भागने लगा।
सिपाहियों ने सोचा
“जाने दो जहन्नम में जाए।”
एक दम लंगड़ाता कश्मीरी मज़दूर लड़खड़ाया और गिर पड़ा। बोरी उसके ऊपर आ रही। सिपाहियों ने उसे पकड़ लिया और बोरी समेत ले गए। रास्ते में कश्मीरी मज़दूर ने बारहा कहा
“हज़रत
आप मुझे क्यूँ पकड़ती है... मैं तो ग़रीब आदमी होती... चावल की एक बोरी लेती... घर में खाती... आप नाहक़ मुझे गोली मारती।” लेकिन उसकी एक न सुनी गई।
थाने में भी कश्मीरी मज़दूर ने अपनी सफ़ाई में बहुत कुछ कहा। “हज़रत
दूसरा लोग बड़ा बड़ा माल उठाती... मैं तो फ़क़त एक चावल की बोरी लेती... हज़रत
मैं तो ग़रीब होती। हर रोज़ भात खाती।”
जब वो थक हार गया तो उसने अपनी मैली टोपी से माथे का पसीना पोंछा और चावलों की बोरी की तरफ़ हसरत भरी निगाहों से देख कर थानेदार के आगे हाथ फैला कर कहा
“अच्छा हज़रत
तुम बोरी अपने पास रख... मैं अपनी मज़दूरी मांगती... चार आने!
- सआदत-हसन-मंटो
उसकी ख़ुदकुशी पर उसके एक दोस्त ने कहा
“बहुत ही बेवक़ूफ़ था जी। मैंने लाख समझाया कि देखो अगर तुम्हारे केस काट दिए हैं और तुम्हारी दाढ़ी मूंड दी है तो इसका ये मतलब नहीं कि तुम्हारा धर्म ख़त्म होगया है... रोज़ दही इस्तिमाल करो। वाहे गुरु जी ने चाहा तो एक ही बरस में तुम फिर वैसे के वैसे हो जाओगे।”
“बहुत ही बेवक़ूफ़ था जी। मैंने लाख समझाया कि देखो अगर तुम्हारे केस काट दिए हैं और तुम्हारी दाढ़ी मूंड दी है तो इसका ये मतलब नहीं कि तुम्हारा धर्म ख़त्म होगया है... रोज़ दही इस्तिमाल करो। वाहे गुरु जी ने चाहा तो एक ही बरस में तुम फिर वैसे के वैसे हो जाओगे।”
- सआदत-हसन-मंटो
दो दोस्तों ने मिल कर दस-बीस लड़कियों में से एक लड़की चुनी और बयालिस रुपये दे कर उसे ख़रीद लिया।
रात गुज़ार कर एक दोस्त ने उस लड़की से पूछा
“तुम्हारा नाम क्या है?”
लड़की ने अपना नाम बताया तो वो भिन्ना गया। “हम से तो कहा गया था कि तुम दूसरे मज़हब की हो।”
लड़की ने जवाब दिया
उस ने झूट बोला था।”
ये सुन कर वह दौड़ा दौड़ा अपने दोस्त के पास गया और कहने लगा
“इस हरामज़ादे ने हमारे साथ धोका किया है… हमारे ही मज़हब की लड़की थमा दी... चलो वापस कर आएँ।”
रात गुज़ार कर एक दोस्त ने उस लड़की से पूछा
“तुम्हारा नाम क्या है?”
लड़की ने अपना नाम बताया तो वो भिन्ना गया। “हम से तो कहा गया था कि तुम दूसरे मज़हब की हो।”
लड़की ने जवाब दिया
उस ने झूट बोला था।”
ये सुन कर वह दौड़ा दौड़ा अपने दोस्त के पास गया और कहने लगा
“इस हरामज़ादे ने हमारे साथ धोका किया है… हमारे ही मज़हब की लड़की थमा दी... चलो वापस कर आएँ।”
- सआदत-हसन-मंटो
“कौन हो तुम?”
“तुम कौन हो?”
“हरहर महादेव... हरहर महादेव?”
“हरहर महादेव?”
“सुबूत क्या है?”
“सुबूत... मेरा नाम धर्मचंद है?”
“ये कोई सुबूत नहीं?”
“चार वेदों से कोई भी बात मुझ से पूछ लो।”
“हम वेदों को नहीं जानते... सुबूत दो।”
“क्या?”
“पाएजामा ढीला करो?”
पाएजामा ढीला हुआ तो एक शोर मच गया
“मार डालो... मार डालो?”
“ठहरो ठहरो... मैं तुम्हारा भाई हूँ... भगवान की क़सम तुम्हारा भाई हूँ।”
“तो ये क्या सिलसिला है?”
“जिस इलाक़े से आ रहा हूँ वो हमारे दुश्मनों का था इसलिए मजबूरन मुझे ऐसा करना पड़ा... सिर्फ़ अपनी जान बचाने के लिए... एक यही चीज़ ग़लत होगई है। बाक़ी बिल्कुल ठीक हूँ।”
“उड़ा दो ग़लती को।”
ग़लती उड़ा दी गई... धर्मचंद भी साथ ही उड़ गया।
“तुम कौन हो?”
“हरहर महादेव... हरहर महादेव?”
“हरहर महादेव?”
“सुबूत क्या है?”
“सुबूत... मेरा नाम धर्मचंद है?”
“ये कोई सुबूत नहीं?”
“चार वेदों से कोई भी बात मुझ से पूछ लो।”
“हम वेदों को नहीं जानते... सुबूत दो।”
“क्या?”
“पाएजामा ढीला करो?”
पाएजामा ढीला हुआ तो एक शोर मच गया
“मार डालो... मार डालो?”
“ठहरो ठहरो... मैं तुम्हारा भाई हूँ... भगवान की क़सम तुम्हारा भाई हूँ।”
“तो ये क्या सिलसिला है?”
“जिस इलाक़े से आ रहा हूँ वो हमारे दुश्मनों का था इसलिए मजबूरन मुझे ऐसा करना पड़ा... सिर्फ़ अपनी जान बचाने के लिए... एक यही चीज़ ग़लत होगई है। बाक़ी बिल्कुल ठीक हूँ।”
“उड़ा दो ग़लती को।”
ग़लती उड़ा दी गई... धर्मचंद भी साथ ही उड़ गया।
- सआदत-हसन-मंटो
“मैं सिख बनने के लिए हर्गिज़ तैयार नहीं...
मेरा उस्तुरा वापस कर दो मुझे।”
मेरा उस्तुरा वापस कर दो मुझे।”
- सआदत-हसन-मंटो