LATIIFE SHAYARI: EMBRACE HUMOROUS VERSES

EXPERIENCE THE CHARM OF LATIIFE SHAYARI

Indulge in the delightful realm of latiife shayari where witty and humorous verses brighten your moments and evoke laughter. Let the essence of humor fill your heart with joy and appreciation for the light-hearted side of poetry. Explore the art of wit and comedy through latiife shayari, allowing the clever and comical expressions to bring a smile to your face and uplift your spirits with each verse.

कलकत्ता की मशहूर मुग़न्निया गौहर जान एक मर्तबा इलाहाबाद गई और जानकी बाई ‎तवाइफ़ के मकान पर ठहरी। जब गौहर जान रुख़्सत होने लगी तो अपनी मेज़बान से कहा कि ‎‎“मेरा दिल ख़ान बहादुर सय्यद अकबर इलाहाबादी से मिलने को बहुत चाहता है।” जानकी ‎बाई ने कहा कि “आज मैं वक़्त मुक़र्रर कर लूंगी
कल चलेंगे।” चुनांचे दूसरे दिन दोनों अकबर ‎इलाहाबादी के हाँ पहुँचीं। जानकी बाई ने तआ’रुफ़ कराया और कहा ये कलकत्ता की निहायत ‎मशहूर-ओ-मारूफ़ मुग़न्निया गौहर जान हैं। आपसे मिलने का बेहद इश्तियाक़ था
लिहाज़ा ‎इनको आपसे मिलाने लाई हूँ। अकबर ने कहा
“ज़हे नसीब


वरना मैं न नबी हूँ न इमाम
न ‎ग़ौस
न क़ुतुब और न कोई वली जो क़ाबिल-ए-ज़ियारत ख़्याल किया जाऊं। पहले जज था ‎अब रिटायर हो कर सिर्फ़ अकबर रह गया हूँ। हैरान हूँ कि आपकी ख़िदमत में क्या तोहफ़ा ‎पेश करूँ। ख़ैर एक शे’र बतौर यादगार लिखे देता हूँ।” ये कह कर मुंदरिजा ज़ैल शे’र एक ‎काग़ज़ पर लिखा और गौहर जान के हवाले किया



ख़ुशनसीब आज भला कौन है गौहर के सिवा
सब कुछ अल्लाह ने दे रखा है शौहर के सिवा

- अकबर-इलाहाबादी


अकबर के मशहूर हो जाने पर बहुत से लोगों ने उनकी शागिर्दी के दा’वे कर दिये। एक साहब ‎को दूर की सूझी। उन्होंने ख़ुद को अकबर का उस्ताद मशहूर कर दिया। अकबर को जब ये ‎इत्तिला पहुंची कि हैदराबाद में उनके एक उस्ताद का ज़ुहूर हुआ है
तो कहने लगे
“हाँ मौलवी ‎साहब का इरशाद सच है। मुझे याद पड़ता है मेरे बचपन में एक मौलवी साहब इलाहाबाद में ‎थे। वो मुझे इल्म सिखाते थे और मैं उन्हें अ’क़्ल
मगर दोनों नाकाम रहे। न मौलवी साहब ‎को अ’क़्ल आई और न मुझको इल्म।”‎


- अकबर-इलाहाबादी


अकबर इलाहाबादी दिल्ली में ख़्वाजा हसन निज़ामी के हाँ मेहमान थे। सब लोग खाना खाने ‎लगे तो आलू की तरकारी अकबर को बहुत पसंद आयी। उन्होंने ख़्वाजा साहब की दुख़्तर हूर ‎बानो से (जो खाना खिला रही थी) पूछा कि बड़े अच्छे आलू हैं
कहाँ से आए हैं? ‎उसने जवाब दिया कि मेरे ख़ालू बाज़ार से लाए हैं। इस पर अकबर ने फ़िलबदीह ये शे’र पढ़ा

लाए हैं ढूंढ के बाज़ार से आलू अच्छे ‎


इसमें कुछ शक नहीं हैं हूर के ख़ालू अच्छे।

- अकबर-इलाहाबादी


अकबर इलाहाबादी एक बार ख़्वाजा हसन निज़ामी के हाँ मेहमान थे। दो तवाइफ़ें हज़रत ‎निज़ामी से ता’वीज़ लेने आईं। ख़्वाजा साहब गाव तकिया से लगे बैठे थे। अचानक उनके ‎दोनों हाथ ऊपर को उठे और इस तरह फैल गए जैसे बच्चे को गोद में लेने के लिए फैलते हैं ‎और बेसाख़्ता ज़बान से निकला
“आइये आइये।”
तवाइफ़ों के चले जाने के बाद अकबर इलाहाबादी यूं गोया हुए
“मैं तो ख़्याल करता था यहाँ ‎सिर्फ़ फ़रिश्ते नाज़िल होते हैं


लेकिन आज तो हूरें भी उतर आईं।” और ये शे’र पढ़ा

फ़क़ीरों के घरों में लुत्फ़ की रातें भी आती हैं ‎
ज़ियारत के लिए अक्सर मुसम्मातें भी आती हैं।


- अकबर-इलाहाबादी


तहरीक में बर्तानिया के ख़िलाफ़ मज़ामीन लिखने की पादाश में गिरफ़्तार हुए और एक साल ‎क़ैद-ए-बा-मुशक़्क़त की सज़ा पाई। उसके बाद “ज़मींदार” के बहुत से एडिटर गिरफ़्तार हुए। होम ‎मेंबर सर जॉन मीनार्ड जेल के मुआइने के लिए तशरीफ़ लाए तो सालिक साहब से पूछा कि ‎‎“ज़मींदार” का असल एडिटर कौन है?” सालिक साहब ने जवाब दिया
“कम अज़ कम मैं तो ‎असली हूँ।” सर जॉन मीनार्ड ने हंसकर कहा ये तो हम जानते हैं लेकिन आजकल जिसका ‎नाम “ज़मींदार” में एडिटर के तौर पर लिखा जा रहा है वो तो कोई पान फ़रोश है। सालिक ‎साहब ने जवाब दिया कि “जब असल एडिटरों को इस तेज़ी से गिरफ़्तार करते जाएंगे तो ‎किसी पान फ़रोश को ही आगे बढ़ाना पड़ेगा।”‎
‎ ‎

- अब्दुल-मजीद-सालिक


तहरीक में बर्तानिया के ख़िलाफ़ मज़ामीन लिखने की पादाश में गिरफ़्तार हुए और एक साल ‎क़ैद-ए-बा-मुशक़्क़त की सज़ा पाई। उसके बाद “ज़मींदार” के बहुत से एडिटर गिरफ़्तार हुए। होम ‎मेंबर सर जॉन मीनार्ड जेल के मुआइने के लिए तशरीफ़ लाए तो सालिक साहब से पूछा कि ‎‎“ज़मींदार” का असल एडिटर कौन है?” सालिक साहब ने जवाब दिया
“कम अज़ कम मैं तो ‎असली हूँ।” सर जॉन मीनार्ड ने हंसकर कहा ये तो हम जानते हैं लेकिन आजकल जिसका ‎नाम “ज़मींदार” में एडिटर के तौर पर लिखा जा रहा है वो तो कोई पान फ़रोश है। सालिक ‎साहब ने जवाब दिया कि “जब असल एडिटरों को इस तेज़ी से गिरफ़्तार करते जाएंगे तो ‎किसी पान फ़रोश को ही आगे बढ़ाना पड़ेगा।”‎
‎ ‎

- अब्दुल-मजीद-सालिक


सालिक साहब और मौलाना ताजवर
दोनों के दरमियान कशीदगी रहती थी। एक मर्तबा ‎सालिक के एक दोस्त ने कहा कि आपके दरमियान ये “कश्मकश” ठीक नहीं
सुलह हो जानी ‎चाहिए। सालिक बोले



‎“हुज़ूर
हमारी तरफ़ से तो “कश” है “मकश” तो ताजवर साहब करते हैं। आपकी नसीहत तो ‎उनको होनी चाहिए।”

- अब्दुल-मजीद-सालिक


सालिक साहब और मौलाना ताजवर
दोनों के दरमियान कशीदगी रहती थी। एक मर्तबा ‎सालिक के एक दोस्त ने कहा कि आपके दरमियान ये “कश्मकश” ठीक नहीं
सुलह हो जानी ‎चाहिए। सालिक बोले



‎“हुज़ूर
हमारी तरफ़ से तो “कश” है “मकश” तो ताजवर साहब करते हैं। आपकी नसीहत तो ‎उनको होनी चाहिए।”

- अब्दुल-मजीद-सालिक


मौलाना अब्दुल मजीद सालिक हश्शाश-ओ-बश्शाश रहने के आ’दी थे और जब तक दफ़्तर में ‎रहते
दफ़्तर क़हक़हा-ज़ार रहता। उनकी तहरीरों में भी उनकी तबीयत की तरह शगुफ़्तगी ‎होती थी। जब लार्ड वेवल हिंदुस्तान के वायसराय मुक़र्रर हुए तो सालिक ने अनोखे ढंग से ‎बताया कि वो एक आँख से महरूम हैं। चुनांचे मौलाना सालिक ने इन्क़िलाब के मज़ाहिया ‎कॉलम “अफ़कार-ओ-हवादिस” में लिखा

‎“लार्ड वेवल के वायसराय मुक़र्रर होने का ये वा’दा है कि वो सबको एक आँख से देखेंगे।”‎


- अब्दुल-मजीद-सालिक


मौलाना अब्दुल मजीद सालिक हश्शाश-ओ-बश्शाश रहने के आ’दी थे और जब तक दफ़्तर में ‎रहते
दफ़्तर क़हक़हा-ज़ार रहता। उनकी तहरीरों में भी उनकी तबीयत की तरह शगुफ़्तगी ‎होती थी। जब लार्ड वेवल हिंदुस्तान के वायसराय मुक़र्रर हुए तो सालिक ने अनोखे ढंग से ‎बताया कि वो एक आँख से महरूम हैं। चुनांचे मौलाना सालिक ने इन्क़िलाब के मज़ाहिया ‎कॉलम “अफ़कार-ओ-हवादिस” में लिखा

‎“लार्ड वेवल के वायसराय मुक़र्रर होने का ये वा’दा है कि वो सबको एक आँख से देखेंगे।”‎


- अब्दुल-मजीद-सालिक


अब्दुल मजीद सालिक को एक-बार किसी दिल जले ने लिखा

‎“आप अपने रोज़नामे में गुमराहकुन ख़बरें छापते हैं और आ’म लोगों को बेवक़ूफ़ बनाकर ‎अपना उल्लू सीधा करते हैं।” ‎
सालिक साहब ने निहायत हलीमी से उसे जवाब देते हुए लिखा



‎“हम तो जो कुछ लिखते हैं मुल्क-ओ-क़ौम की बहबूदी के जज़्बे के ज़ेर-ए-असर लिखते हैं और ‎अगर हज़ारों क़ारईन में आप जैसा एक आदमी भी हमारे किसी मज़मून से मुतास्सिर हो कर ‎नेक राह इख़्तियार करले
तो हम समझेंगे हमारा उल्लू सीधा हो गया।”

- अब्दुल-मजीद-सालिक


अब्दुल मजीद सालिक को एक-बार किसी दिल जले ने लिखा

‎“आप अपने रोज़नामे में गुमराहकुन ख़बरें छापते हैं और आ’म लोगों को बेवक़ूफ़ बनाकर ‎अपना उल्लू सीधा करते हैं।” ‎
सालिक साहब ने निहायत हलीमी से उसे जवाब देते हुए लिखा



‎“हम तो जो कुछ लिखते हैं मुल्क-ओ-क़ौम की बहबूदी के जज़्बे के ज़ेर-ए-असर लिखते हैं और ‎अगर हज़ारों क़ारईन में आप जैसा एक आदमी भी हमारे किसी मज़मून से मुतास्सिर हो कर ‎नेक राह इख़्तियार करले
तो हम समझेंगे हमारा उल्लू सीधा हो गया।”

- अब्दुल-मजीद-सालिक


लड़का: (हिसाब के टीचर से) जनाब हिन्दी के मास्टर साहब हिन्दी में
उर्दू के मास्टर साहब ‎उर्दू में
और अंग्रेज़ी के मास्टर साहब अंग्रेज़ी में पढ़ाते हैं। फिर आप बिल्कुल हिसाब ही की ‎ज़बान में क्यों नहीं पढ़ाते हैं?‎
‎ ‎


मास्टर साहब: ज़्यादा तीन-पाँच मत करो
नौ-दो-ग्यारह हो जाओ। वरना तीन-तेरह कर ‎दूँगा। ‎

- अकबर-अली-ख़ाँ


बेटा स्कूल से वापस आकर माँ से बोला: “अम्मी! अम्मी! देखिए तो मेरे सर पर क्या हैं?’’
माँ ने ग़ौर से देखकर कहा: “बेटे तुम्हारे सर पर तो सिर्फ बाल हैं।”
“क्या सिर्फ बाल?” बेटे ने हैरत से पूछा
माँ ने कहा : हाँ भई सिर्फ और सिर्फ बाल हैं


इसके सिवा कुछ नहीं।
बेटे ने कहा : “अम्मी मास्टर साहब कितने झूटे हैं
कह रहे थे हमारे इमतिहान सर पर आगए हैं।”

- अज्ञात


उस्ताद: अगर तुम मग़रिब की तरफ़ जाओ तो क्या होगा?
शागिर्द: होगा क्या। मैं ग़ुरूब हो जाऊँगा।

- अज्ञात


एक बूढ़ी औरत रास्ते से जा रही थी रास्ते में वो एक साईकल से टकरा गई। साईकल सवार के दाढ़ी भी थी। बूढ़ी ने कहा कि “इतनी बड़ी दाढ़ी रख कर टक्कर देते हो तुम्हें शर्म नहीं आती” उस आदमी ने कहा “ये दाढ़ी है
ब्रेक थोड़ी ही है।”

- अज्ञात


शौहर ने बीवी के सामने बे-तहाशा क़हक़हे लगाते हुए कहा
“अपने हमीद साहब की बेगम भी ख़ूब हैं। हम क्रिकेट के कोच के बारे में गुफ़्तगु कर रहे थे
हमारी गुफ़्तगु सुनकर वो ये समझीं कि कोच के चार पहिए होते हैं।
ये कह कर वो फिर से क़हक़हे लगाने लगा। उनकी बीवी भी क़हक़हे लगाने में शरीक हो गईं। दोनों मियाँ बीवी जब दिल खोल कर ख़ूब हंस चुके तो बीवी ने सरगोशी के अंदाज़ में शौहर से पूछा।


अच्छा तो क्रिकेट कोच में कितने पहिए होते हैं?

- अज्ञात