मेरे चेहरे पर आज

मेरे चेहरे पर आज, एक और चेहरा
मैं देखता हूँ ,हर तरफ चेहरे पर एक और चेहरा
जब कभी लेकर चला, मैं अपना चेहरा
दुनिया को नही भाया मेरा, असली चेहरा

मैने भी औड लिया चेहरा, बिल्कुल वैसा
तुम्हे पसंद है, ये है अब वही चेहरा
असल में तो अब मेरे पास हैं, कई चेहरे
वक़्त के हिसाब से में बदल लेता हूँ, चेहरा

अब कहीं भी नहीं ले जाता हूँ, असली चेहरा
जब तक था, मेरे पास एक ही चेहरा
तुम्हे भी पसंद नहीं था, मेरा असली चेहरा
हक़ीकत तो ये है, खो गया है मेरा असली चेहरा

ये चारों तरफ बेन्तेहाँ भीड़ फिर भी इस बड़े से शहर में कोई ही होता है अपना

ये चारों तरफ बेन्तेहाँ भीड़
फिर भी इस बड़े से शहर में
कोई ही होता है अपना,
वरना तो यहाँ सपना भी
कभी नहीं होता है, अपना
यहाँ आसमाँ से बरसता है, धन
अगर तू लपक सके तो लपक
यही है तेरे रिश्तों नातो का
इस शहर का मजबूत जोड़
भागते हुए लोग पहुँचते कहीं नहीं
फिर भी निरंतर भागते और भागते
बस यहाँ भाग-दौड़ का निरंतर ओलंपिक
ये शहर है, हाँ ये मुंबई है ,,,,,,,,,,,

सुबह उजाले थे खड़े इस इंतजार में तू कदम बड़ा सूरज भी लाया प्रकाश तेरे साथ न हो कारवां बिना

सुबह उजाले थे खड़े
इस इंतजार में
तू कदम बड़ा
सूरज भी लाया प्रकाश
तेरे साथ न हो कारवां
बिना फिकर, तू कदम उठा
आगे बढ़ ,क्यों देर
तेरे हौंसले हैं बुलंद
तो मंजिल कहाँ दूर
बहने दे हवाओं को
बन कर आंधी
ये तूफान,
कुछ कर न पायेंगे
भले ही विशाल हो
कितना भी सागर
तेरी छोटी हो नाव
डाल दे सागर में
तेरे इरादों की पतवार
सागरों को बौना कर देंगी
तू खोज मुसीबतें
निपट और आगे बढ़
मुहँ छिपाना तेरा काम नहीं
देख ,इससे पहले
सूरज तपे ,दुनिया चले
तू चल ,और सिर्फ चल
तेरे चलने से
मंजिल करीब है

आसमान से जितनी शबनम रोज बरसती है उससे ज्यादा इस धरती पर धुप बिखरती है अहसासों को

आसमान से जितनी शबनम रोज बरसती है
उससे ज्यादा इस धरती पर धुप बिखरती है

अहसासों को कहाँ जरुरत होती भाषा की
खुशबू कितनी ख़ामोशी से बातें करती है

कुछ सपने तो सारे जीवन शौक मनाते हैं
जब भी दिल में घुटकर कोई ख्वाहिश मरती है

कुछ ख्वाहिशो के पंख मुझे भी दे दो इस डूबते हुआ तिनके को सहरा दे दो कोई

कुछ ख्वाहिशो के पंख मुझे भी दे दो
इस डूबते हुआ तिनके को सहरा दे दो
कोई मेरी डूबती को कश्ती किनारा दे दो
मुझे भी कोई पतवार और माझी भी दे दो
कुछ ख्वाहिशो के पंख मुझे भी दे दो

मै नन्हे पैरो से कितनी दूर चल पाउगा
गिरते , उठते कब तक संभल पाउगा
कोई थामने वाले हाथ मुझे भी दे दो
कोई अपना साया और साथ भी दे दो
कुछ ख्वाहिशो के पंख मुझे भी दे दो ……

आस्मां को देखकर कब तक सो जाउगा
तारो मै कब तक अपनों को देखता जाउगा
कुछ परियो के कहानिया मुझे भी दे दो
टूटा तारो वाली किस्मत मुझे भी दे दो
कुछ ख्वाहिशो के पंख मुझे भी दे दो

तू छू रहा

तू छू रहा,
गर किसी उंचाई को
अपने गुरुर से बाहर आ
के खुदा भी कभी-कभी
आ जाता है, जमीं पर
वो देख यहाँ जितने भी
दरख़्त हैं जो लदे हैं फलों से
सब झुके हुए हैं
जो अकड़ के खड़े हैं
उनका हश्र तूफानों के बाद
जमीन बता देती है

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