वो मेरी बीवी जा रही, मगर उसके लबों पर इस मुस्कुराहट का नाम तक नहीं जैसा कि लोगों ने मेरी तस्कीने क़ल्ब के लिए मुझसे कहा था। बस हड्डीयों का एक ढांचा है। उसकी भयानक सूरत से ज़ाहिर होता है कि वो एक मुह्लिक बीमारी का शिकार है और मौत का ख़ौफ़ उस पर तारी है। उस की आँखों में मेरे लिए अब लुत्फ़ और प्यार की जगह बेगानगी और नफ़रत है, मैं मुस्तहिक़ ही इसका था। इस नफ़रत की वजह, वो नाज़ाईदा बच्चा है जिसका सर उसके कुल्हे की हड्डीयों में अब तक फंसा दिखाई देता है जिसकी वजह से उसकी जान गई। ये भला किसे ख़्याल हो सकता था कि मेरी बीवी को मरते वक़्त मुझसे नफ़रत होगी। मैंने उसको तक्लीफ़ और मौत से बचाने के लिए कौन सी बात उठा रखी थी, मगर नहीं। मैं ही उस की मौत का बाइ’स हुआ मैंने ही उसको दर्द और दुख पहुंचाया, मर्दों की जहालत और हिमाक़त की कोई इंतिहा नहीं। मगर ये भी कहना सही नहीं कि मैं जहालतऔर हिमाक़त का शिकार था। हाँ ये सरासर ग़लत है। दरअसल मैं ग़रूर के पंजे में गिरफ़्तार था जिसका मुझे ए’तिराफ़है। हमारी शादी ऐसी उ’म्र में हुई थी जब हम में एक दूसरे के जज़्बात समझने की सलाहियत तक न थी। लेकिन बाद में जो हादिसा पेश आया उसका इल्ज़ाम मैं क़िस्मत, या ऐसे हालात पर जिन पर मुझे कोई क़ाबू न था, नहीं रखना चाहता। मुझे अपनी बीवी से कभी मुहब्बत नहीं हुई और होती भी कैसे? हम दो मुख़्तलिफ़ दायरा ज़िंदगी में गर्दां थे। मेरी बीवी पुराने ज़माने की तंग-ओ-तारीक गलियों में और मैं नए ज़माने की साफ़ और चौड़ी पक्की सड़कों पर। लेकिन जब मैं दूसरे मुल्कों में गया और उससे कई बरस तक जुदा रहा तो कभी कभी मेरा दिल उसके लिए बेचैन होता था। वो अपने छोटे से मुस्तहकम पुराने क़िले में थी, और मैं ज़िंदगी की दवा दोश फ़ुज़ूल और बेफ़ैज़ इ’श्क़-बाज़ी से तंग आकर कभी कभी इस पाक-ओ-बावफ़ा औरत का ख़्वाब देखा करता था जो बिला किसी मुआ’वज़े के मुझ पर से सब कुछ निसार करने के लिए तैयार थी। जब मेरी ये कैफ़ियत होती... तो बेताबी के साथ मुझे उससे मिलने की ख्वाहिश होती। एक दफ़ा’ मुझ पर ऐसी ही कैफ़ियत तारी थी कि मुझे उसका एक ख़त मिला। मैं बेक़रार हो गया और फ़ौरन छः हज़ार मील के फ़ासले से वतन की तरफ़ चल पड़ा। उसने ख़त में लिखा था, “मैंने अभी तकिये के नीचे से आपका ख़त निकाल कर पढ़ा। बहुत मुख़्तसर है। ग़ालिबन आप अपने में मशग़ूल होंगे, मगर ख़ैर मुझे इसकी कोई शिकायत नहीं, बस आपकी मुझे ख़ैरित मा’लूम होती रहे और आप अच्छे रहें और ख़ुश रहें, मेरे लिए यही काफ़ी है। जब से मैं बीमार हूँ सिवाए इसके कि आपको याद करूँ और उन अ’जीब अ’जीब चीज़ों और नए नए लोगों का ख़्याल करूँ जिनसे आप वहां मिलते होंगे मुझे और काम नहीं, मुझसे चला नहीं जाता इस वजह से पलंग पर पड़ी पड़ी तरह तरह के ख़्याल किया करती हूँ। कभी तो इस में लुत्फ़ आता है और कभी इससे सख़्त तक्लीफ़ होती है, जब लोग मेरी सेहत के बारे में गुफ़्तगु करते हैं और मुझसे इज़हार-ए-हमदर्दी करते हैं और ये नसीहत करते हैं तो मुझे बड़ी कोफ़्त होती है, ये लोग ये तक नहीं समझते कि मुझे क्या रोग है। उन्हें सिर्फ अपनी तस्कीने क़ल्ब के लिए मेरी हालत पर रहम आता है। अपने वालिदैन पर भी बार हूँ, वो अपने जी में ख़्याल करते होंगे कि बावजूद मेरी शादी हो जाने के मैं ऐसी बदनसीब हूँ कि उनके गले पड़ी हूँ। इसका नतीजा ये है कि मैं हरवक़त इस कोशिश में रहती हूँ कि बहुत ज़्यादा मायूसी और रंज का इज़हार न करूँ और मेरे वालिदैन ऐसी कोशिश करते हैं जिससे ये ज़ाहिर होता है कि उन्हें मेरी बीमारी की वजह से बड़ा तरद्दुद और फ़िक्र है। ग़रज़ दोनों तरफ़ बनावट ही बनावट है। मैं आपसे किसी बात की शिकायत करना नहीं चाहती और न आपके काम में हारिज होना चाहती हूँ। आप मुझे भूल न जाएं और कभी कभी ख़त लिख दिया करें, मेरे लिए यही बहुत है बल्कि कभी कभी तो मुझे ये ख़्याल होता है कि आपका मुझसे दूर ही रहना बेहतर है। मुझे डर इस बात का है कि जैसे बीमारी के बाद से यहां मैं क़रीब क़रीब सबसे ना-आशना सी हो गई हूँ वैसे ही मैं कहीं आपको भी न खो बैठूँ। दिन रात मेरी बुरी हालत देखकर कहीं आपका दिल भी मेरी तरफ़ से न हट जाये। वहां से तो आप महज़ इस का तसव्वुर कर सकते हैं और मैं आपको अपना वो कामिल दमसाज़ तसव्वुर कर सकती हूँ जिसकी मेरे दिल को तमन्ना है।”
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