बेगम बाज़ार की मनहूस दुकान में एक दफ़ा फिर बेलदार व सूती के भारी भारी पर्दे लटकने लगे। मूजिद “दाफे चंबल-ओ-दाद” और जापानी खिलौनों की दुकान —ओसाका फेयर (जापान से मुतअल्लिक़) के मुलाज़िम इस्तिजाब से थारू लाल फ़ोटोग्राफ़र को ओक पलाई का डार्क रुम बनाते देख कर उसके तारीक मुस्तक़बिल पर आँसू बहाने लगे। “एक माह से ज़्यादा चोट न सहेगा.... बेचारा।” “दुकान क्या होगी..... बाज़ार से कुछ हट कर है ना। नज़र उसे सामने नहीं पाती और बस.....” एक माह, दो और चार....थारू लाल वहीं था। मूजिद “दाफे चंबल-ओ-दाद” और ओसाका फेयर के मुलाज़िमों ने हैरत से उंगलियाँ मुँह में डाल लीं। जब कि 11 अगस्त की सुबह को उन्होंने एक जहाज़ी साइज़ का साइनबोर्ड इस मनहूस दुकान पर आवेज़ाँ होते हुए देखा। 6x12 फुट साइज़ के साइन बोर्ड पर देव सूरत हुरूफ़ ख़ालिस सनअती अंदाज़ से नाचते हुए इंटरनेशनल फ़ोटो स्टूडियो की शक्ल इख़्तियार कर रहे थे।
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