बिस्तर-ए-मर्ग पर पड़ी गोमती ने चौधरी विनायक सिंह से कहा, “चौधरी मेरी ज़िंदगी की यही लालसा थी।” चौधरी ने संजीदा हो कर कहा, “इसकी कुछ चिंता न करो काकी। तुम्हारी लालसा भगवान पूरी करेंगे। मैं आज ही से मज़दूरों को बुला कर काम पर लगाए देता हूँ। देव ने चाहा तो तुम अपने कुँवें का पानी पियोगी। तुमने तो गिना होगा कितने रुपये हैं?” गोमती ने एक पल आँखें बंद कर के बिखरी हुई याददाश्त को यकजा कर के कह, “भय्या मैं क्या जानूँ कितने रुपये हैं, जो कुछ हैं वो इसी हाँडी में हैं। इतना करना कि इतने ही में काम चल जाये। किसी के सामने हाथ फैलाते फिरोगे।” चौधरी ने बंद हाँडी को उठा कर हाथों से तौलते हुए कहा, “ऐसा तो करेंगे ही काकी, कौन देने वाला है। एक चुटकी भीक तो किसी के घर से निकलती नहीं। कुंआँ बनवाने के लिए कौन देता है। धन्य हो तुमको कि अपनी उम्र भर की कमाई इस धर्म काज के लिए दे दी।”
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