अबू बकर रोड शाम के अंधेरे में गुम हो रही है। यूँ दिखाई देता है, जैसे कोई कुशादा सा रास्ता किसी कोयले की कान में जा रहा है... सख़्त बारिश में विरूंटा की बाड़, सफ़रीना का गुलाब, क़ुतुब सय्यद हुसैन मक्की के मज़ार शरीफ़ के खन्डर में, एक खिलते हुए मिश्की रंग की घोड़ी जिसकी पुश्त नम-आलूद हो कर सियाह साटन की तरह दिखाई दे रही है, सब भीग रहे हैं... और राटा भीग रही है! राटा कौन है? उसे कल्प बृक्ष कह लो या काम धेनु गाय। या उससे बेहतर राटा... राटा है। फिराया लाल की बीवी, एक दस साला काहिल, जाहिल, न-अह्ल छोकरे की माँ। चंद माह हुए तख़्फ़ीफ़ के मौक़े पर ह्यूम पाइप कंपनी वालों ने फिराया लाल को काम से अलग कर दिया। उस वक़्त से उसकी पुर-सुकून ज़िंदगी में क़िस्मत के गर्दबाद पैदा होने लगे। तलाश-ए-मआ'श में न जाने वो कहाँ चल दिया। सुना है कि वो राटा को हमेशा के लिए छोड़ गया है, क्योंकि वो उससे मोहब्बत करती है और जिस शख़्स में मोहब्बत की सी कमज़ोरी हो, वो पा-ए-इस्तिहक़ार से ठुकरा दिया जाता है... मिरचू तेज़ाबी का बयान है कि पोह के एक सर्द, नीले से धुँदलके में उसने फिराया लाल को अपनी ही बिरादरी की एक औरत के साथ-जाते देखा था। वही औरत... कौड़ी, जो अबू बकर रोड के मकानों में से गमले उठाया करती थी। उन दिनों फिराया लाल बेकार था। बेकार इन्सान के अक़्ल-ओ-फ़िक्र में खून-ए-जिगर पीने या कसरत से मोहब्बत करने के सिवा और कुछ नहीं समाता। बाज़ आदमियों ने फिराया को कोट पुतली में सफ़ें बनाते हुए देखा है। क़रीब ही कौड़ी एक ग़ैर आदमी के साथ मुस्कुरा-मुस्कुरा कर बातें कर रही थी... राटा फिर भी फिराया लाल को दिल से चाहती है। ये मोहब्बत और जुनूँ के अंदाज़ भी कभी छुटते हैं... और राटा भीग रही है! राटा की घोड़ी अबू बकर रोड पर हमारी कोठी के सामने घूम रही है। वो उसका शब-ए-दीजूर का सा रंग... सिर्फ़ उसके हिनहिनाने और कभी-कभी बिजली के कौंदने से उसके वजूद का इल्म होता है। सुबह से बेचारी को दाना नहीं दिया गया, न ही उसकी मोच वाली टाँग पर हल्दी लगाई गई है। भूक की शिद्दत से बेबस और बिगड़ कर वो आवारा हो रही है। शायद फिराया को ढूँढती होगी। फिराया... जो उसे भी छोड़ कर कौड़ी के साथ चला गया है। कौड़ी जो कोट पुतली में किसी दूसरे मर्द के साथ मुस्कुरा-मुस्कुरा कर बातें कर रही थी। एक वक़्त में एक दिल के अंदर मिश्की घोड़ी रह सकती है या कौड़ी। कौड़ी या राटा... और भूकी मिश्की घोड़ी हिनहिनाती है जैसे कभी सिकन्दर से जुदा होने पर बूस फेल्स हिनहिनाता था।
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