अहमद दीन खाते पीते आदमी का लड़का था। अपने हम उम्र लड़कों में सबसे ज़्यादा ख़ुशपोश माना जाता था, लेकिन एक वक़्त ऐसा भी आया कि वो बिल्कुल ख़स्ता हाल हो गया। उसने बी.ए किया और अच्छी पोज़ीशन हासिल की। वो बहुत ख़ुश था, उस के वालिद ख़ान बहादुर अताउल्लाह का इरादा था कि उसे आला ता’लीम के लिए विलायत भेजेंगे। पासपोर्ट ले लिया गया था, सूट वग़ैरा भी बनवा लिए गए थे कि अचानक ख़ान बहादुर अताउल्लाह ने जो बहुत शरीफ़ आदमी थे, किसी दोस्त के कहने पर सट्टा खेलना शुरू कर दिया। शुरू में उन्हें इस खेल में काफ़ी मुनाफ़ा हुआ। वो ख़ुश थे कि चलो मेरे बेटे की आला ता’लीम का ख़र्च ही निकल आया, मगर लालच बुरी बला है। उन्होंने ये समझा कि उनकी पुश्त पर चौगुनी है, जीतते ही चले जाऐंगे। उनका वो दोस्त जिसने उनको इस रास्ते पर लगाया था बार बार उनसे कहता था,“ख़ान साहब, माशा-अल्लाह आप क़िस्मत के धनी हैं, मिट्टी में भी हाथ डालें तो सोना बन जाये।”
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