रात रात में ये ख़बर शहर के इस कोने से उस कोने तक फैल गई कि अतातुर्क कमाल मर गया है। रेडियो की थरथराती हुई ज़बान से ये सनसनी फैलाने वाली ख़बर ईरानी होटलों में सट्टेबाज़ों ने सुनी जो चाय की प्यालियां सामने रखे आने वाले नंबर के बारे में क़ियास दौड़ा रहे थे और वो सब कुछ भूल कर कमाल अतातुर्क की बड़ाई में गुम हो गए। होटल में सफ़ेद पत्थर वाले मेज़ के पास बैठे हुए एक सटोरी ने अपने साथी से ये ख़बर सुन कर लर्ज़ां आवाज़ में कहा, “मुस्तफ़ा कमाल मर गया!” उसके साथी के हाथ से चाय की प्याली गिरते गिरते बची, “क्या कहा, मुस्तफ़ा कमाल मर गया!” इस के बाद दोनों में अतातुर्क कमाल के मुतअ’ल्लिक़ बात-चीत शुरू हो गई। एक ने दूसरे से कहा, “बड़े अफ़सोस की बात है, अब हिंदुस्तान का क्या होगा? मैंने सुना था ये मुस्तफ़ा कमाल यहां पर हमला करने वाला है... हम आज़ाद हो जाते, मुसलमान क़ौम आगे बढ़ जाती, अफ़सोस तक़दीर के साथ किसी की पेश नहीं चलती!”
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